कौटिल्य के अर्थशास्त्र की प्रासंगिकता (kautilya ke arthashastra ki prasangikta) –
प्राचीन भारत को विश्वपटल एक बड़ी पहचान देने में अहम भूमिका निभाने वाले और भारत के मैक्यावली कहे जाने वाले कौटिल्य द्वारा रचित ‘अर्थशास्त्र’ लोक प्रशासन पर भारत का सबसे पुराना ग्रंथ है और अर्थशास्त्र की प्रासंगिकता आज भी बनी हुई है। वास्तव में ‘अर्थशास्त्र कौटिल्य द्वारा रचित मौर्यकालीन ग्रंथ है।
यह मौर्यकाल के प्रशासन के बारे मे जनता को अवगत कराता है। प्रशासन के संबंध में अनेक विचार अर्थशास्त्र में प्रकट किए गए हैं तथा प्रशासन को कैसे सुचारू रूप से चलाया जाए, इसके संबंध में अनेक उपाय प्रस्तुत किए हैं. चूंकि भारत का वर्तमान प्रशासन अतीतकालीन प्रशासनिक व्यवस्थाओं एवं प्रागैतिहासिक शासकों का विकसित प्रतिरूप है।
भारतीय लोक प्रशासन के विकास की लंबी यात्रा में जहाँ अनेक साम्राज्य बने और बिगडे़, वहां इसकी दो विशेषताएं निरंतर कायम रही। प्रथम प्रशासनिक संगठन की संरचना प्रारंभिक इकाई के रूप में ग्राम और द्वितीय प्रशासनिक संगठन में केन्द्रीयकरण और विकेन्द्रीकरण की प्रवृत्तियों का सामंजस्य!
आज भी उक्त दोनों विशेषताएं भारतीय लोक प्रशासन में कायम है। कौटिल्य के द्वारा रचित अर्थशास्त्र वास्तविक रूप से तथा आर्थिक दृष्टि से प्रशासन पर भारत का सबसे प्राचीन ग्रंथ है, जिसमें कौटिल्य ने विभिन्न पहलुओं पर विचार किया है। कौटिल्य ने अर्थशास्त्र में लिखा है कि राजा उन व्यक्तियों को मंत्री नियुक्त करेगा, जो उच्च कुल में उत्पन्न हुए हो, वीर, बुद्धिमान, ईमानदार व स्वामीभक्त हो।
अर्थशास्त्र में कौटिल्य ने कहा है कि राज्य रूपी रथ एक पहिए के द्वारा नहीं चल सकता, अतएव दूसरे पहिए के रूप में उसे मंत्री परिषद की आवश्यकता होती है। कौटिल्य ने अपनी उपरोक्त पुस्तक में एक पूरी प्रणाली बतायी है, जिसके आधार पर नगरों का प्रशासन व्यवस्थित किया जाता था। यह प्रणाली नगर जीवन की विशिष्ट समस्याओं तथा आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर तैयार की गई थी।
राजस्व प्रशासन, प्रशासन का अत्यंत महत्वपूर्ण भाग था। कौटिल्य का विचार था कि संपूर्ण कार्य कोष पर निर्भर करता है। राजा को सबसे अधिक कोष बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिए। मौर्यकाल में राज्य की आय का मुख्य स्रोत भूमि कर था। यहाँ हम कौटिल्य के अर्थशास्त्र के साक्ष्य को स्वीकार करके चलें तो पाएँगे कि एक विशाल और जटिल नौकरशाही की स्थापना उल्लेखनीय विशेषता थी।
इस प्रकार मौर्यकालीन प्रशासन प्राचीन प्रशासन एवं आधुनिक प्रशासन में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। कौटिल्य का अर्थशास्त्र एक राजा के कर्तव्य एवं उनके चयन की प्रक्रिया एवं राज्य की प्रशासनिक व्यवस्था का उल्लेख करता है। कौटिल्य के अनुसार राजा को अपनी प्रजा के कल्याण में अपना हित देखना चाहिए, क्योंकि राजा के अनुकरण पर ही अन्य अधिकारियों के व्यवहार भी निर्भर करते हैं। इसलिए राजा का कल्याणकारी होना नितांत आवश्यक है। अर्थशास्त्र में सुशासन की अवधारणा सर्वत्र दृष्टिगोचर होती है।
भारत जैसे विकासशील देश के संदर्भ में कौटिल्य द्वारा वर्णित प्रशासनिक व्यवस्था की पर्याप्त प्रासंगिकता है, क्योंकि वर्तमान राज्य पुलिस राज्य न होकर कल्याणकारी राज्य है। प्रशासन को जनोन्मुख तथा पारदर्शी होना अति आवश्यक है, जिससे जनकल्याणकारी योजनाओं का संचालन सही ढंग से हो सके एवं अपेक्षानुरूप परिणाम प्राप्त हो, चूँकि अब प्रशासन का मुख्य बल इस बात पर होता है कि विकास कार्यों को कैसे संचालित किया जाए।
इनसे प्राप्त परिणाम का समान वितरण हो तथा विकास के लाभ जनता के सबसे निचले स्तर तक बिना किसी भेदभाव तक पहुँचे। इसलिए यह आवश्यक है कि प्रशासनिक व्यवस्था में तटस्थता एवं प्रतिबद्धता विकास कार्यों के प्रति हो, न कि अपने स्वार्थ एवं राजनीतिज्ञों के प्रति! प्रशासनिक व्यवस्था में पारदर्शिता उसी प्रकार से आवश्यक है, जिस प्रकार मौर्य काल में विद्यमान थी। उस समय की कुशल गुप्तचर व्यवस्था जो कि प्रशासनिक अधिकारियों के भ्रष्टाचार एवं दुर्व्यवहार पर नियंत्रण रखती थी, उसी प्रकार की व्यवस्था से आज भी प्रशासन तंत्र को चुस्त, ईमानदार, कर्मनिष्ठ वा कल्याणकारी बनाया जा सकता है।
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