मुर्गी पालन क्या है ( What is poultry farming in hindi) –
मुर्गी पालन का इतिहास बहुत पुराना है! सामान्यतः घरेलू मुर्गियों को पालने का व्यवसाय मुर्गी पालन कहलाता है मुर्गीयां आमतौर पर मांस, अंडे तथा पंखों के लिए पाली जाती हैं! मुर्गी पालन के लिए प्रयोग किए जाने वाला पोल्ट्री शब्द अधिक व्यापक है, जिसमें मुर्गियों के अतिरिक्त बतख, हंस, कबूतर, मोर आदि को भी शामिल किया जाता है! इन सभी पक्षियों में मुर्गी सबसे प्रमुख है!
भारत में मुर्गीपालन प्राचीन काल से होता आ रहा है! वास्तव में भारत तथा इसके अन्य पड़ोसी देश की जंगली मुर्गी के मूल स्थान समझे जाते हैं! भारत में मुर्गियों को विख्यात नस्ल ‘असील’ है! असील को संसार भर में मुर्गों की लड़ाई के लिए बहुत पसंद किया जाता है! हमारे देश में क्रय विक्रय के आधार पर व्यवस्थित ढंग से मुर्गी पालन के धंधे का आम रिवाज नहीं था!
आज भी यह उद्योग अवस्थित उद्योग के रूप में मौजूद है, परंतु देश में पौष्टिक भोजन के निम्न स्तर को ऊंचा उठाने में मुर्गी पालन का विशेष महत्व है! भारत अंडों के उत्पादन में विश्व में चीन और अमेरिका के बाद तीसरा स्थान तथा मुर्गियों के मांस के उत्पादन में पाचवां स्थान रखता है!
मुर्गी पालन के आधारभूत तत्व (basic elements of poultry farming in hindi) –
वर्तमान में भारत में मुर्गी पालन के लिए विभिन्न कुक्कुट फार्म चलाए जा रहे हैं, परंतु मुर्गीपालन से अधिकतम लाभ को सुनिश्चित करने के लिए निम्नलिखित आधारभूत तत्व का होना आवश्यक है –
(1) अच्छी नस्ल के चूजे –
मुर्गी पालन में चूजों का वही स्थान है, जो कृषि कार्य में बीजों का होता है! अंडों का उत्पादन ज्यादा पर एक अनुवांशिक प्रक्रिया है परंतु चूजा यदि अच्छी किस्म के नहीं होंगे तो इनसे अंडे एवं मीट अधिक मात्रा में प्राप्त नहीं किया जा सकता है! इसके अतिरिक्त कुछ रोग जैसे – साॅल्मोनेला, सीआरडी, जो माता-पिता से आते हैं, अंडों के माध्यम से चूजों में भी आ जाते हैं! अतः मुर्गी पालन हेतु एक आवश्यक है कि उसे अच्छी हैजरी से लिया जाए!
(2) संतुलित आहार –
यदि चूजों को दिया जाने वाला आहार संतुलित हैं तो इससे आगे चलकर अधिक अंडे प्राप्त कर सकते हैं! संतुलित भोजन मुर्गियों को स्वस्थ रखता ही है, साथ ही उन्हें रोगों से लड़ने की शक्ति भी प्रदान करता है! यदि आहार घटिया दर्जे का है तो चूजे चाहे कितनी अच्छी किस्म के हो, आगे चलकर न तो अच्छे अंडे दे सकते हैं और न हीं अच्छे ब्रायलर बन सकते हैं! यही कारण है कि मुर्गी फार्म में 70% खर्च देने का ही होता है!
(3) रोग नियंत्रण –
मुर्गीपालन में रोग नियंत्रण का बहुत महत्व होता है अच्छी किस्म के चूजे संतुलित आहार या अच्छी रखरखाव के बावजूद यदि रोगों से ग्रसित हो जाए तो सारी मेहनत बेकार हो जाती है एक बार बीमारी फैलने पर मुर्गियों को अपनी पुरानी स्थिति में आने में काफी समय लगता है जिससे मुर्गीपालन को काफी हानि उठानी पड़ती है!
(4) अच्छा रखरखाव –
मुर्गी पालन से अधिकतम उत्पादन प्राप्त करने के लिए फार्म पर अच्छे रखरखाव की जरूरत होती है! एक सफल मुर्गी फार्म इस बात पर निर्भर करता है कि मुर्गी पालक अपने फार्म को किस व्यवसायिक का आधार पर चलाता है! पोल्ट्री यूनिट की निपुणता कुल अंडों की उत्पादन द्वारा जांची जाती है न कि मुर्गियों की संख्या से! यह पाया गया है कि सही वैज्ञानिक तरीके से फार्म चलाने पर मुर्गी पालन 80% तक अंडे प्राप्त कर लेते हैं!
(5) समुचित बाजार व्यवस्था –
मुर्गी पालन में लाभ या हानि, अंडों तथा ब्रायलरों की बिक्री से होने वाली आमदनी पर निर्भर करती है, जिसके लिए आवश्यक है कि बाजार की समुचित व्यवस्था हो! मुर्गी पालक बिचौलियों के चक्कर में न पडकर अपने माल को उपभोक्ताओं तक पहुंचाने का प्रबंध करें!
मुर्गी पालन की विशेषताएँ –
मुर्गीपालन की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
(1) उत्पादन की गति –
मुर्गी पालन एक लाभकारी और जल्दी परिणाम देने वाला व्यवसाय है। मुर्गियाँ जल्दी बढ़ती हैं और कुछ ही महीनों में अंडे देना शुरू कर देती हैं।
(3) अल्प स्थान की आवश्यकता –
मुर्गीपालन सीमित जगह में भी किया जा सकता हैं, जिससे शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में इसे आसानी से अपनाया जा सकता है।
(2) आर्थिक लाभ –
मुर्गी पालन में कम निवेश और उच्च रिटर्न की संभावना होती है। अंडे और मांस दोनों ही बाजार में अच्छी कीमत प्रदान करते हैं।
(4) स्वास्थ्य प्रबंधन –
मुर्गियों के लिए विभिन्न रोगों और संक्रमणों से बचाव के लिए नियमित टीकाकरण और स्वास्थ्य प्रबंधन की आवश्यकता होती है।
(5) संसाधनों का उपयोग –
मुर्गीपालन में गोबर, खाद और अन्य उप-उत्पादों का उपयोग कृषि कार्यों में किया जा सकता है, जिससे संसाधनों का बेहतर उपयोग होता है।
(6) चारा और पोषण –
मुर्गियों को पोषक तत्वों से भरपूर चारा और पानी की निरंतर उपलब्धता की जरूरत होती है, जिससे उनकी वृद्धि और उत्पादकता प्रभावित होती है।
इन विशेषताओं के साथ, मुर्गीपालन एक सस्ता और व्यावसायिक रूप से फायदेमंद विकल्प है, लेकिन इसके लिए उचित प्रबंधन और देखभाल की आवश्यकता होती है।
मुर्गी पालन का महत्व या लाभ (murgi palan ka mahatva ya labh) –
मुर्गीपालन व्यवसाय अत्यंत लाभदायक व्यवसाय है! इस व्यवसाय से कम व्यय करके अधिक लाभ प्राप्त किया जा सकता है! इस व्यवसाय का महत्व इसके लाभों से स्पष्ट हो जाता है, जो निम्नलिखित हैं –
(1) इस व्यवसाय में कम समय में ही अर्थात लगभग 5 से 6 माह में ही आय प्राप्त होने लगती है!
(2) भोजन में प्रोटीन की मात्रा को बढ़ाकर संतुलित आहार प्रदान करना इस व्यवसाय का सर्वोत्तम लाभ है!
(3) घर में अनुपयोगी भोजन सामग्री, जैसे – गेहूं की भूसी, साख भाजी एवं इसके छिलके आदि मुर्गियों को देकर बिना व्यय किए उन्हे पाल सकते हैं!
(4) घर की महिलाएं एवं बच्चे भी सुगमता पूर्वक थोड़ा समय देकर मुर्गीपालन कार्य कर सकते हैं, क्योंकि इस कार्य के लिए किसी विशेष ट्रेनिंग की आवश्यकता नहीं होती हैं!
(5) मुर्गी के मद मूत्र से बनी खाद कृषि के लिए बहुमूल्य होती है!
(6) मुर्गीपालन काफी हद तक बेरोजगारी की समस्या का समाधान भी करता है!
मुर्गी पालन की समस्याएं (murgi palan ki samasya) –
(1) रोग –
मुर्गीपालन की सबसे बड़ी समस्या इनमें फैलने वाला रोग हैं! मुर्गी पालन केंद्रों पर मुर्गियां बड़े-बड़े झुंडों में पाली जाती हैं! ऐसी स्थिति में झुंड के एक भी पक्षी के संक्रमित होने पर वह बीमारी झुंड में फैल जाती है! मुर्गियों में कई प्रकार के रोग होते हैं, जैसे – रानीखेत, फाउल पॉक्स, हैजा, स्पाइरोकिटोसिस, बर्ड फ्लू आदि!
(2) समुचित बाजार व्यवस्था का अभाव –
मुर्गीपालन से अधिकतम लाभ प्राप्त करने के लिए आवश्यक है कि इसे प्राप्त उत्पादों के विपणन की समुचित व्यवस्था हो! भारत के जो क्षेत्र मुर्गीपालन से संबंधित हैं, वहां पर प्रायः आधारभूत संरचना का अभाव देखा गया है! इस कारण मुर्गी पालन से प्राप्त उत्पादों का न तो भंडारण हो पाता है और न हीं विपणन! इसके अतिरिक्त भारत में इस व्यवसाय हेतु संगठित बाजार व्यवस्था का अभाव भी इस पर नकारात्मक प्रभाव डालता है!
(3) वित्त का अभाव –
भारत में मुर्गीपालन का व्यवसाय मुख्यतः असंगठित क्षेत्र से संबंधित है, जिसके कारण मुर्गी पालन हेतु प्रायः वित्त का अभाव देखा जाता है! आज भी भारत में मुर्गियों को गरीब की गाय समझा जाता है!
(4) वैज्ञानिक तकनीक का अभाव –
मुर्गीपालन के अंतर्गत भारत में विभिन्न पोल्ट्री फार्मो का विकास किया गया है, परंतु अभी तक उनमें उन्नत तकनीक उपलब्ध नहीं है! इन फार्मो में वैज्ञानिक तकनीकों का अभाव होने से मुर्गियों से औसत 40 से 50% ही अंडे प्राप्त हो पाते हैं तथा आधुनिक व्यवस्था न होने के कारण मुर्गियों में रोग होने की संभावना भी बढ़ जाती हैं!
(5) सामाजिक स्वीकृति का अभाव –
भारत में मुर्गीपालन यद्यपि घरेलू स्तर पर प्राचीन काल से होता आ रहा है, परंतु अब तक इसे व्यापक सामाजिक स्वीकृति प्राप्त नहीं हो सकी है! इस कारण भी यह व्यवसाय अभी भी पिछड़ा हुआ है!
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