ग्रामीण विकास में पंचायती राज की भूमिका (gramin vikas me panchayati raj ki bhumika) –
पंचायत राज लागू होने से अब तक के कार्यकाल में पंचायती राज ने निश्चित तौर पर कई महत्वपूर्ण उपलब्धियों को हासिल किया है और लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण के नए आयाम को प्रस्तुत कर भारत के ग्रामीण सामाजिक आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका दर्ज की है, जो इस प्रकार हैं –
(1) महिलाओं के लिए 33% आरक्षण प्रदान करके पंचायती राज में महिला सशक्तिकरण को प्रोत्साहित किया है फलत आज का नाटक में 46% और बंगाल में 35% महिलाएं इन पदों पर आसीन हैं!
(2) ग्रामीण आर्थिक विकास और स्त्रोंतों का समुचित उपयोग इस व्यवस्था की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है! जहां श्रमदान और सहकारिता के माध्यम से आर्थिक विकास की सामूहिक भावना को भी प्रोत्साहन मिल रहा है!
(3) इसमें सत्ता और शक्ति का विकेंद्रीकरण ग्रामीण स्तर तक विस्तृत करके लोकतंत्र को मजबूत किया है!
(4) ग्रामीण भारत में राजनीतिक जागरूकता को उत्पन्न करके लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण को सफल बनाने और लोकतंत्र को मजबूत करने में भी यह संस्था की महत्वपूर्ण भूमिका है!
(5) आज गांव में नेतृत्व के नए प्रतिमान का उदय हुआ है और इस क्षेत्र में अधिक आयु, धर्म, जाति की उच्चता का महत्व कम हो रहा है!
परंतु ग्रामीण विकास के क्षेत्र में उपरोक्त उपलब्धियों के बावजूद हम पाते हैं कि पंचायती व्यवस्था ग्रामीण विकास के अपने घोषित लक्ष्य को पूरा करने में अभी तक पूरी तरह सफल नहीं हो सका है!
पंचायती राज की असफलता (panchayati raj ki asafalta) –
(1) मुख्यत: आर्थिक दृष्टि से संपन्न और शिक्षित व्यक्ति ही पंचायतों में अभिजन वर्ग के रूप में उभरे हैं!
(2) इसने गांव में गुटबंदी और जातीय संघर्ष में वृद्धि की हैं!
(3) पंचायती राज ग्रामवासियों में योजनाओं के प्रति सकारात्मक उत्साह पैदा कर पाने में पूर्णता सफल नहीं रहा है!
(4) पंचायती राज व्यवस्था भी भी ग्रामीण समाज के कमजोर वर्गों के हितों को संरक्षित करने में पूरी तरह से सफल नहीं हो पाई है आज भी अनुसूचित जातियां ऊंची जातियों तथा पुरुष वर्गों के हाथों की कठपुतली बनी हुई है!
(5) पंचायत राज ने गांव में एक नए गैर-सरकारी नौकरशाही को जन्म दिया है और सत्ता लोलुपता एवं भ्रष्टाचार को बढ़ाया है!
पंचायती राज की समस्याएं (Panchayati raj ki samasya) –
(1) 73वें संविधान संशोधन के तहत पंचायती राज को संवैधानिक दर्जा दिया गया और उसे लागू करना अनिवार्य बनाया गया परंतु इसकी महत्वपूर्ण कमी आ रही किन संस्थानों के शक्ति स्थान तरण का राज्य कार्य राज्य विधानमंडल पर छोड़ दिया गया और राज्य सरकारें अपने अधीन पंचायतों को पर्याप्त शक्ति देने से कतराती है!
(2) आज वयस्क मताधिकार और संख्या बल पर चुनी हुई पंचायतों को परंपरागत जातीय पंचायतें, ऊंची जातियां, प्रभु जातियाँ और पुरुषवर्ग स्वतंत्रतापूर्वक कार्य नहीं करने देते और आज भी उनको अपने निर्देश अनुसार कार्य करने के लिए बाध्य करते हैं क्योंकि आधुनिकीकरण के बावजूद अभी भी ग्रामीण भारत में सामाजिक आर्थिक विषमता और पितृसत्तात्मकता के अवशेष विद्यमान है!
(3) पंचायतों को कर वसूली तथा जुर्माना लगाने तक का अधिकार है लेकिन यह पर्याप्त नहीं है और न ही वास्तविक है!
(4) भ्रष्टाचार, गरीबी और अशिक्षा जैसी आधारभूत समस्याएं भी कई रूपों में पंचायती राज की सफलता के मार्ग में बाधा उत्पन्न करतीं हैं!
(5) गांव में गुड बंदी के चलते योजनाओं की स्वीकृति भी पंचायती राज संस्थाओं की क्रियाशीलता को बाधित करती है!
उपरोक्त कारणों से पंचायत राज व्यवस्था अपने 29 वर्षों के समय अवधि में अपेक्षित लक्ष्यों की प्राप्ति में पूर्णता सफल नहीं रही है! यह बात इस तथ्य से और भी पुष्ट होती है कि पंचायती राज व्यवस्था से संबंधित आवंटित निधि का भी पूर्ण रूप उपयोग नहीं हो पाता हैं! केरल, गुजरात जैसे राज्यों में जहां यह राशि 70 % का खर्च की जाती है वही बिहार, उत्तर प्रदेश में मात्र 30% निधियों का उपयोग हो पाता हैं!
पंचायती राज व्यवस्था का मूल्यांकन (panchayati raj vyavastha ka mulyankan) –
उपरोक्त सभी पक्षों पर विचार करने के पश्चात हम यह कह सकते हैं कि पंचायती राज के परिणाम अधिकांश सकारात्मक रहे हैं! संवैधानिक दर्जा तथा समयबद्ध चुनाव द्वारा महिलाओं की भागीदारी और समाज के पिछड़े वर्गों का इस प्रक्रिया में स्थान सामाजिक न्याय की दिशा में महत्वपूर्ण उचित कदम साबित हुआ है!
पंचायती राज संस्थाओं को न केवल ग्रामीण विकास का माध्यम बनाया गया है बल्कि लोकतंत्र के विकेंद्रीकरण की प्रक्रिया में निम्नस्तर पर लोगों की भागीदारी भी सुनिश्चित की गई है जिससे लोगों की निर्णय प्रक्रिया में भाग लेने के लिए परोक्ष रास्ता मिला है! भारत में तीन चौथाई जनता जो गांवों में रहतीं हैं उनके लिए “काम भी अपना गाँव भी अपना” जैसे उद्देश्य ने पंचायती राज संस्थाओ के गौरव को और बढ़ा दिया है!
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