पर्यावरण प्रभाव आकलन क्या है (Environmental impact assessment in hindi) –
पर्यावरणीय प्रभाव आकलन किसी प्रस्तावित परियोजना अथवा क्रियाकलाप के पर्यावरण पर पड़ने वाले संभावित प्रभाव के अध्ययन के रूप में जाना जाता है! पर्यावरणीय प्रभाव आकलन व्यवस्थित ढंग से परियोजना के लाभकारी एवं हानिकारक दोनों प्रकार के प्रभाव का आकलन करता है!
पर्यावरण प्रभाव आकलन किसी परियोजना के लिए संभावित विविध विकल्पों की तुलना करता है एवं ऐसे विकल्प चुनने में मदद करता है जो परियोजना के पर्यावरणीय एवं आर्थिक मूल्य के दृष्टिकोण से सर्वश्रेष्ठ हो!
पर्यावरण प्रभाव आकलन का विकासक्रम –
पर्यावरण प्रभाव आकलन की संकल्पना एवं विधि क उद्भव संयुक्त राज्य अमेरिका में 1970 में राष्ट्रीय पर्यावरण नीति अधिनियम पारित होने के साथ हुआ! 1 जनवरी 1970 को राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने इस पर हस्ताक्षर किए!
राष्ट्रीय पर्यावरण नीति अधिनियम के लागू होते ही भविष्य में क्रियान्वित होने वाली सभी कार्य योजनाओं के लिए पर्यावरणीय प्रभाव आकलन को अनिवार्य बना दिया गया इसके अभाव में किसी भी प्रस्तावित परियोजना की स्वीकृति नहीं दी जा सकती थी! ट
इसका प्रभाव विश्व के अन्य देशों पर भी पड़ा और कनाडा, आस्ट्रेलिया एवं न्यूजीलैंड जैसे देशों ने जल्द ही इसे अपना लिया! वर्ष 1990 तक कोलंबिया और फिलीपींस जैसे विकासशील देशों ने भी इसे अंगीकृत किया!
पर्यावरण प्रभाव आकलन की प्रक्रिया (Process of Environmental impact assessment in hindi) –
पर्यावरणीय प्रभाव आकलन प्रक्रिया में 9 चरण होते हैं! प्रत्येक चरण परियोजना के समग्र निष्पादन का आकलन करने में समान रूप से उपयोगी होता है! सामान्यतः किसी पर्यावरण प्रभाव आकलन का प्रारंभ स्क्रीनिंग चरण के साथ होता है जिसमें समय एवं संसाधनों का निर्धारण किया जाता है!
क्रियान्वयन ऐसे प्रस्ताव के साथ किया जाता है जो पर्यावरण पर प्रभाव डालता है जबकि समाप्ति एक ऐसी रिपोर्ट के साथ होती है जिसके आधार पर आगे के निर्णय लिए जाते हैं! पर्यावरणीय प्रभाव आकलन की प्रक्रिया के प्रमुख चरण निम्नलिखित हैं –
जांच –
जांच पर्यावरण प्रभाव आकलन का प्रथम चरण है जो यह तय करता है कि क्या प्रस्तावित परियोजना के पर्यावरणीय पभाव आकलन की आवश्यकता है और यदि है, तो आकलन का स्तर क्या होना चाहिए?
प्रयोजन –
प्रयोजन में उन प्रमुख मुद्दों एवं प्रभाव की पहचान की जाती है जिनकी जांच की जानी है! यह चरण अध्ययन की सीमा एवं आकलन की प्रक्रिया की समय सीमा भी तय करता है!
बेसलाइन अध्ययन –
बेसलाइन अध्ययन के अंतर्गत परियोजना के विकास कार्य के प्रारंभ से पहले कि पर्यावरण स्थिति का आकलन किया जाता है! इसमें निर्धारित मानकों के लिए स्थान विशेष के प्राथमिक आंकड़ों का निरीक्षण किया जाता है!
प्रभावों की भविष्यवाणी –
यह चरण सबसे कठिन और विवादित माना जाता है क्योंकि प्रत्येक प्रभाव, विशेषकर प्राकृतिक एवं सामाजिक प्रभावों का सटीक मापन नहीं किया जा सकता हैं!
प्रभाव की भविष्यवाणी के माध्यम से परियोजना के पर्यावरण पर पड़ने वाले संभावित प्रभावों का मापन किया जाता है! यह चरण पर्यावरणीय प्रभाव आकलन का सबसे तकनीकी चरण माना जाता है!
पर्यावरण प्रभाव आकलन के उद्देश्य (paryavaran prabhav aakalan ke uddeshya) –
(1) पर्यावरण विचार-विमर्श के बाद स्पष्ट रूप से उल्लेख करना एवं उसे विकास योजनाओं में सम्मिलित करना!
(2) विकास योजनाओं के प्रतिकूल सार्थक जैव, भौतिक, सामाजिक एवं अन्य प्रासंगिक प्रभावों का पूर्व ज्ञान प्राप्त करना, उनसे बचना, उन्हें कम करना अथवा उनकी क्षतिपूर्ति करना!
(3) ऐसे विकास कार्य को बढ़ावा देना जो इस स्थाई हो तथा प्रबंधीय अवसरों एवं संसाधनों का सर्वश्रेष्ठ उपभोग करते हो!
(4) प्रकृति के नियमों एवं पारिस्थितिकी प्रक्रिया, जो प्राकृतिक क्रियाओं का निष्पादन करती है की क्षमता एवं उत्पादकता को सुरक्षा प्रदान करना
पर्यावरण प्रभाव आकलन के घटक (Components of environmental impact assessment in hindi) –
prayavaran prabhaav aakalan के घटक इस प्रकार हैं –
ध्वनि या शोर पर्यावरण –
इसके अंतर्गत शोर के वर्तमान स्तर की जांच की जाती है एवं प्रस्तावित परियोजना के कारण भविष्य में होने वाले शोर के स्तर का अनुमान लगाया जाता है! साथ ही, शोर के स्तर में किसी भी प्रत्याशित वृद्धि के कारण पर्यावरण पर होने वाले प्रभाव की पहचान की जाती है! इसके साथ ही ध्वनि प्रदूषण के संबंध के उपायों की भी सिफारिश की जाती है!
जलीय पर्यावरण –
प्रस्तावित परियोजना के क्षेत्र में मौजूद सतही एवं भूमिगत जल संसाधनों की मात्रा एवं गुणवत्ता का अध्ययन किया जाता है! परियोजना में पानी के उपयोग किए जाने से जल संसाधनों पड़ने वाले संभावित प्रभाव एवं प्रस्तावित क्रियाकलाप से अपशिष्ट जल में होने वाले मात्रात्मक और गुणात्मक परिवर्तन का आकलन किया जाता है!
जोखिम आकलन –
जोखिम की पहचान के लिए जोखिम सूचकांको, सूची विश्लेषण, प्राकृतिक आपदाओं की संभावना आदि सूचकांकों का सहारा लिया जाता है! दुर्घटनाओं से लगने वाली आग, विस्फोट, खतरनाक पदार्थों के लीकेज आदि के परिणामों का विश्लेषण किया जाता है! इसमें ऐसी किसी भी आपदा से निपटने की तैयारी के लिए ऑन साइट तथा ऑफ साइट आपदा प्रबंधन योजना का निर्माण करना शामिल है!
पर्यावरण प्रबंधन योजना –
पर्यावरण के प्रत्येक घटक के लिए नियंत्रण, पुनर्वास और पुनसर्थापना, शर्तों के अनुपालन के लिए योजना, समय निर्धारण व संसाधन के आवटन आदि योजना के लिए प्रारूप तैयार किए जाते हैं
भारत में पर्यावरण प्रभाव आकलन का इतिहास –
भारत में पर्यावरणीय प्रभाव आकलन का आरंभ 1976-77 में हुआ जब योजना आयोग ने सूचना और प्रौद्योगिकी विभाग को नदी घाटी परियोजनाओं का परीक्षण पर्यावरणीय दृष्टिकोण से करने को कहा! बाद में इसका विस्तार उन परियोजना तक भी कर दिया गया जिनके लिए सार्वजनिक निवेश बोर्ड के अनुमोदन की आवश्यकता होती थी!
भारत में पर्यावरण प्रभाव आकलन की कमियाँ (Shortcomings of Environmental impact assessment in India) –
भारत में किए जाने वाले पर्यावरण प्रभाव आकलन की प्रमुख कमियाँ इस प्रकार है -व्यावहारिक कमी, विशेषज्ञ समिति की संरचना एवं मानक, जन सुनवाई, निगरानी, गुणवत्ता आदि!
भारत में पर्यावरण प्रभाव आकलन की कमियाँ को दूर करने के सुझाव –
भारत में पर्यावरणीय प्रभाव आकलन की कमियों को दूर करने के लिए निम्नलिखित उपाय किए जाने चाहिए -जन सुनवाई, गुणवत्ता, क्षमता निर्माण, मंजूरी प्रदान करना, व्यवहार्यता, विशेषज्ञ समिति की संरचना,
प्रश्न :- परियोजना आकलन क्या है ?
उत्तर :- परियोजना मूल्यांकन एक विधायी योजना और मूल्यांकन की प्रक्रिया है। जिसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि किसी विकास परियोजना के कारण निवासियों और समुदायों की पर्यावरणीय, सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक उन्नति कोई में महत्वपूर्ण प्रतिकूल प्रभाव तो नहीं पड रहा है।
प्रश्न :- पर्यावरण मूल्यांकन क्या है
उत्तर :- पर्यावरणीय प्रभाव आकलन किसी प्रस्तावित परियोजना अथवा क्रियाकलाप के पर्यावरण पर पड़ने वाले संभावित प्रभाव के अध्ययन के रूप में जाना जाता है! पर्यावरणीय प्रभाव आकलन व्यवस्थित ढंग से परियोजना के लाभकारी एवं हानिकारक दोनों प्रकार के प्रभाव का आकलन करता है!
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