किसी जीवंत लोकतंत्र के लिए निष्पत एवं पारदर्शी चुनाव एक आवश्यक प्रक्रिया है लेकिन भारत जैसे विश्व के विशाल लोकतांत्रिक देश में लोकसभा, विधानसभाओं स्थानीय निकायों के चुनाव निरंतर होने से देश हमेशा चुनावी मोड में रहता है जिससे सरकारों द्वारा नीति निर्णय न ले पाने की वजह से विकास प्रभावित होता है साथ ही देश पर आर्थिक बोझ बना रहता हैं इससे निजात दिलाने के लिए भारत में एक देश एक चुनाव की धारणा विचाराधीन हैं!
एक राष्ट्र एक चुनाव की धारणा से आशय देश में लोकसभा तथा राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने से है। इसके अंतर्गत प्रायः पंचायत तथा नगरीय निकाय के चुनाव को सम्मिलित नहीं किया जाता है।
भारत में एक देश एक चुनाव का विचार नया नहीं है। देश के प्रारंभिक चार आम चुनाव एक साथ हो सके है अर्थात 1952, 1957, 1962 व 1967 में लोकसभा तथा राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव एक साथ हुए थे, इसके बाद कुछ राज्यों की विधानसभाएँ बीच में भंग होने तथा लोकसभा के बीच में भंग होने की वजह से दोनों स्तरों पर एक साथ चुनाव का सिलसिला थम गया।
एक साथ चुनाव कराने का विस्तृत विचार 1999 में प्रकाशित विधि आयोग की 170 वीं रिपोर्ट में दिया गया। वर्त्तमान की NDA सरकार के एजेंडों में भी इसे शामिल किया गया है। वर्तमान प्रधानमंत्री माननीय श्री नरेंद्र मोदी ने इसका समर्थन करते हुए कहा है कि चुनाव एक त्यौहार की तरह होना चाहिए।
14 राजनीतिक दलों ने इसका समर्थन किया है
(1) एक साथ चुनाव कराने से देश का चुनावी खर्च एक चौथाई रह जाएगा।
(2) चुनाव के लिए बार-बार आचार संहिता लागू नहीं होने से विकास कार्य प्रभावित नहीं होंगे।
(3) सरकारी कर्मचारी तथा सुरक्षा बलों को चुनाव के लिए बार-बार तैनात नहीं करना पड़ेगा।
(4) इससे काले धन तथा भ्रष्टाचार पर रोक लगाने में मदद मिलेगी।
(5) मतदाता सरकार की नीतियों तथा कार्यक्रमों को राज्य और केंद्र दोनों स्तरों पर परख सकेंगे।
16 राजनीतिक दल इसके विरोध में है।
(1) राज्य विधानसभाओं के कार्यकालको लोकसभा के साथ करने के लिए विधानसभाओं के कार्यकाल घटाने तथा बढाने होगे, जो देश के संघीय ढाँचे के खिलाफ है।
(1) संविधान में ऐसा प्रावधान नहीं किया गये है इसलिए ऐसा करना संविधान की मूल भावना के विरुद्ध है।
(2) एक साथ चुनाव कराने के लिए संविधान के अनुच्छेद (83, 89, 172, 275 और 356 में) में संशोधन करना पड़ेगा जिसके लिए दो तिहाई से अधिक राज्यों का अनुमोदन आवश्यक होगा।
(4) इसके लिए जन प्रतिनिधित्व कानून, 1951 में संशोधन करके धारा 2 में एक साथ चुनाव की परिभाषा जोड़नी पड़ेगी।
(5) बीच में लोकसभा तथा विधानसभाओं के भंग होने से मध्यावधि चुनाव के कारण एक साथ चुनाव कराना संभव नहीं होगा।
(6) एक साथ चुनाव होने से राष्ट्रीय मुद्दों के बागे क्षेत्रीय मुद्दे छोटे जुड़ सकते हैं।
(7) एक साथ चुनाव कराने के लिए बड़ी मात्रा में EVM की आवश्यकता होगी और अधिक संख्या में सरकारी कर्मचारियों तथा सुरक्षा बलों की तैनाती करनी पड़ेगी।
इस प्रकार एक राष्ट्र एक चुनाव के विचार को देश में अमली जामा पहनाना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है तथापि जिस तरीके से देश में एक देश एक कर, एक देश एक समान कार्ड की व्यवस्था लागू की गई है उसी तरीके से एक राष्ट्र और एक चुनाव की धारणा को लागू करना देश के लिए हितकर है, इसके लिए दृढ राजनीतिक इच्छाशक्ति, राजनीतिक दलों तथा जनता के समर्थन की आवश्यकता है, इसलिए इसे लागू करने में अभी और समय लेना चाहिए।
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