विजयनगर साम्राज्य : विजयनगर साम्राज्य की स्थापना, प्रमुख शासक, विशेषताएं, जनजीवन, पतन upsc

विजयनगर साम्राज्य (vijaynagar empire in hindi upsc) –

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विजयनगर साम्राज्य के उदभव में काकतीय वंश का योगदान था! माना जाता कि हरिहर और बुक्का काकतीय वंश के अंतर्गत ही सामंत थे! बाद में वह काम्पिल्य राज्य में मंत्री नियुक्त हो गए! 1388 में मोहम्मद बिन तुगलक ने काम्पिल्य राज्य को जीतकर हरिहर और बुक्का को बंदी बनाकर अपने साथ दिल्ली ले आया! बाद में यहां से मुक्त होने के उपरांत हरिहर और बुक्का ने अपने गुरु विद्यारण्य संत के आशीर्वाद से 1336 में विजयनगर की स्थापना की! 

हरिहर एवं बुक्का ने अपने पिता संगम के नाम पर संगम राजवंश की स्थापना की! विजयनगर साम्राज्य की राजधानी हम्पी थी! विजयनगर साम्राज्य के खंडहर तुंगभद्रा नदी पर स्थित है! इसकी राजभाषा तेलुगू थी! विजयनगर में कुल 4 राजवंशों ने शासन किया – संगम वंश (1336-1485), सुलूव वंश (1485-1505), तुलुव वंश (1505-1570) अरावीडू वंश (1570-1612) 

विजयनगर साम्राज्य के प्रमुख शासक (vijay nagar samrajya ke pramukh shashak) –

हरिहर प्रथम – 

हरिहर प्रथम संगम का प्रथम शासक हरिहर प्रथम के पिता का नाम संगम था! इनके नाम पर यह संगम वंश कहलाया! 1346 ई. में हरिहर प्रथम ने होयसल राज्य का क्षेत्र जीतकर विजय नगर साम्राज्य में मिला लिया! हरिहर प्रथम के समय विजयनगर राज्य की राजधानी अनोगोण्डी थी! 

बुक्का प्रथम – 

बुक्का प्रथम ने वेदमार्ग प्रतिष्ठापक और राजसिंहासन का अवलंब की उपाधि धारण की थी! बुक्का प्रथम ने अपना एक राजदूत चीन भेजा था! बुक्का प्रथम ने अपने पुत्र कुमार कंपन को मदुरै क्षेत्र के विजय के लिए भेजा था, जिसमें कुमार कंपन को सफलता मिली और मदुरै क्षेत्र को विजयनगर साम्राज्य में मिला लिया गया! 

हरिहर द्वितीय – 

हरिहर द्वितीय महाराजाधिराज की उपाधि धारण की! हरिहर द्वितीय  ने बहमनी राज्य से गोवा और दाभोल छीन लिया! हरिहर द्वितीय ने श्रीलंका पर भी चढाई की! माधव विधारण्य (वेदभाष्यकार) हरिहर द्वितीय का मुख्यमंत्री था! हरिहर द्वितीय की मृत्यु के पश्चात क्रमशः  विरूपाक्ष, बुक्का द्वितीय, मलिकार्जुन तथा देवराय प्रथम शासक हुए! 

देवराय प्रथम – 

देवराय प्रथम का संघर्ष बहमनी शासक फिरोजशाह बहमनी के साथ हुआ, जिसमें प्रथमतः देवराय प्रथम की पराजय हुई और उसे अपनी पुत्री का विवाह फिरोजशाह बहमनी के साथ करना पड़ा, परंतु शीघ्र ही देवराय प्रथम ने वारंगल की सहायता से फिरोजशाह बहमनी को पराजित किया! 

देवराय प्रथम ने सर्वप्रथम 10,000 मुसलमानों को अपनी सेना में भर्ती किया किंतु विजय नगर की सेना में सबसे अधिक मुसलमानों की भर्ती देवराज द्वितीय द्वारा की गई देवराय प्रथम के काल में इटली का यात्री निकोलो कोंटी विजय नगर आया था देवराय प्रथम के दरबार में श्रीनाथ नामक विद्वान रहते थे जिसने हरविलास सम की रचना की थी! 

देवराय प्रथम ने तुंगभद्रा नदी पर बांध बनवाया था ताकि जल की कमी दूर करने के लिए नगर में नहर लाई जा सके! सिंचाई के लिए उसने हरिद्र नदी पर भी बांध बनवाया था! 

देवराय द्वितीय –

संगम वंश का सबसे प्रतापी शासक देवराज द्वितीय था! इसे इमाडिदेवराय, प्रौढ देवराय एवं गजबेटकर कहा जाता था! देवराज द्वितीय ने अनेक क्षेत्रों की विजय की तथा श्रीलंका के विरुद्ध भी नौसैनिक अभियान किया! देवराज द्वितीय ने मुसलमानों को सेना में भर्ती करने की नीति जारी रखी! 

देवराज द्वितीय काल में भारत का राजदूत अब्दुल रज्जाक विजयनगर आया था! देवराज द्वितीय विद्वानों का संरक्षक था तथा वह स्वयं विद्वान था! उसने दो संस्कृत ग्रथों महानाटक सुधानिधि तथा ब्रह्मसूत्र पर टीका की रचना की थी!

देवराज द्वितीय के उत्तराधिकारी अयोग्य सिद्भ हुए तथा संगम वंश का पतन हो गया! संगम वंश का अंतिम शासक विरुपाक्ष द्वितीय था! 1485 ई. में नरसिंह सालुव ने सालुव राजवंश की स्थापना की! इस घटना को प्रथम बलापहार कहा जाता है! 1505 में वीर नरसिंह ने एक बार फिर सत्ता अपहरण किया और तुलुव वंश की स्थापना की, इसे द्वितीय बलापहार कहा जाता है! 

कृष्णदेव राय – 

1509 ई. में वीर नरसिंह का छोटा भाई कृष्णदेव राय विजयनगर का शासक बना! कृष्णदेव राय ने यवनराज्य, स्थापनाचार्य, अभिनव भोज, आंध्रपितामह, आंध्रभोज की उपाधि धारण की! बाबर ने तुजुक- ए- बाबरी में कृष्णदेव राय को भारत का सर्वाधिक शक्तिशाली शासक बताया है! 

कृष्णदेव राय ने तेलुगु में अमुक्तमाल्यद एवं संस्कृत में जामबवंती कल्याण की रचना की! कृष्णदेव राय ने उड़ीसा के गजपति शासक प्रतापरुद्र देव को पराजित कर तेलंगाना के क्षेत्र पर कब्जा कर लिया! उसी प्रकार कृष्णदेव राय ने बीजापुर के शासक इस्माइलशाह को भी पराजित किया!

कृष्णदेव राय ने 1510 ई. में  पुर्तगालियों को भटकल में एक किला बनाने की अनुमति इस शर्त पर दी थी कि अगर पुर्तगाली बीजापुर से गोवा क्षेत्र छीन लेंगे! पुर्तगालियों ने यह शर्त पूरी कर भटकल में किले का निर्माण किया! कृष्णदेव राय की यह अदूरदर्शिता नीति थी! कृष्णदेव राय के काल में पुर्तगाली यात्री डोमिंगो पायस तथा बारबोसा विजयनगर की यात्रा की थी! 

अच्युतदेव राय – 

कृष्णदेव राय ने अपना उत्तराधिकारी अपने चचेरे भाई अच्युतदेव राय को नियुक्त किया था, क्योंकि उसका एकमात्र पुत्र केवल 18 माह का था! किंतु कृष्णदेव राय के जमाता रामराय को यह व्यवस्था पसंद नहीं आई तथा रामराय ने अपने साले सदाशिव राय को राजा बनाना चाहा! 

रामराय के प्रयत्नों के विफल करने के लिए अच्युतदेव राय ने अपना दो बार राज्याभिषेक अलग स्थानों पर क्रमश तिरूपति और कालाहस्ती में किया! अच्युतदेव के काल में पुर्तगाली यात्री नूनिज विजयनगर की यात्रा पर आया था! 

सदाशिव राय – 

अच्युतदेव राय के पश्चात सदाशिव राय शासक बना, किंतु वास्तविक शक्ति रामराय के हाथों में थी! रामराय कभी अहमदनगर और गोलकुंडा के साथ मिलकर बीजापुर पर तो कभी बीजापुर और गोलकुंडा के साथ मिलकर अहमदनगर पर हमला कर देता था! 

वस्तुतः उसका उद्देश्य दक्षिण भारत में शक्ति संतुलन बनाए रखना था! अंत में दक्षिण के तीनों राज्यों उसकी राजनीति को समझ गए और तीनों ने विजयनगर पर आक्रमण कर दिया! 1565 ई. में कृष्णा नदी के तट पर बनीहटटी या राक्षस तगडी. या तालीकोटा की लड़ाई में विजय नगर की भयंकर पराजय हुई!

तिरूमल – 

तालिकोटा की लड़ाई के पश्चात रामराय का भाई तिरूमल सदाशिव राय को लेकर पेनुकोंडा आ गया! 1570 ई. में तिरुमल ने अरावीडू वीरू वंश की स्थापना की तथा पेनुकोंडा को राजधानी बनाया! अरावीडू वंश का महान शासक वेंकट द्वितीय हुआ, जिसने चंद्रगिरि को राजधानी बनाया! 

इसके काल में 1612 ई. में मैसूर में वाडियार वंश की स्थापना हुई! आगे मैसूर के महान शासक हैदर अली एवं टीपू सुल्तान हुए और अरावीडू वंश का अंतिम शासक रंग तृतीय हुआ! इस प्रकार विजयनगर का अंतिम शासक रंग प्रतीक था!  

विजयनगर साम्राज्य की विशेषताएं (vijaynagar samrajya ki visheshta) –

विजयनगर साम्राज्य का राजनीतिक जीवन (vijaynagar samrajya ka rajnitik jeevan) – 

विजयनगर साम्राज्य में राजा का पद सर्वोच्च होता था, उसकी सहायता के लिए अनेक मंत्री होते थे! मंत्रियों को दंडनायक या नायक कहा जाता था! केंद्र का विभाजन प्रांत (मंडल) में, प्रांत का विभाजन जिला (वलनाड/ कोटि)  जिले का विभाजन तहसील (स्थल/नाडू) में, तहसील का विभाजन 50 ग्रामों के समूह (मेलग्राम) में था मेलग्राम का विभाजन गांव (उर) में होता था! 

साम्राज्य की समस्त भूमि तीन भागों में विभाजित होती थी भंडारवाद भूमि (राजकीय भूमि), अमरम भूमि (अमरनायकों को दी गई भूमि) तथा मान्या भूमि (धार्मिक अनुदान के रूप में दी गई भूमि)! 

साम्राज्य की एक विशिष्ट व्यवस्था नायंकार व्यवस्था थी! अमरनायक/ नायक या नायंकार अमरम भूमि से राजस्व वसूल करता था, एक सैन्य टुकडी रखता था तथा संबंधित भूमि का प्रशासन देखता था! उसका पद वंशानुगत नहीं था! नायंकार केंद्र में अपना एक प्रशासनिक एजेंट स्थानापति रखता था! नायंकारों पर नियंत्रण रखने के लिए अच्युतदेव राय ने इनके यहां महामंडलेश्वर नामक एक अधिकारी की नियुक्ति की थी! 

विजयनगर साम्राज्य की आर्थिक व्यवस्था (vijaynagar samrajya ki aarthik vyavastha) –

विजयनगर साम्राज्य में कृषि उन्नत अवस्था में थी! भू राजस्व विभाग को अठनवे विभाग तथा भू राजस्व को शिष्ट कहा जाता था! भू राजस्व नगद (सिद्भद्भाय) और अनाज (जिंस) दोनों रूपों में वसूल किया जाता था! भू राजस्व की राशि उपज का 1/3 से 1/6 भाग होती थी! 

ब्राह्मणों को केवल 1/20 भाग तथा मंदिरों केवल 1/30 भाग देना होता था! इस काल में विजयनगर साम्राज्य में युद्ध में मारे जाने वाले परिवार को रक्तकोडगै नामक भूमि अनुदान में दी जाती थी तथा युद्ध में वीरता दिखाने वाले सैनिकों को गण्डप्रेद प्रदान किया जाता है! 

विजयनगर साम्राज्य की सांस्कृतिक उपलब्धियां (vijaynagar samrajya ki sanskritik uplabdhiyan) –

कृष्णदेव राय का काल तेलुगु साहित्य का क्लासिक युग माना जाता है उनके दरबार में तेलुगु आठ दिग्गज विद्वान रहते थे जिन्हें अष्टदिग्गज कहा जाता था! इनमें से सर्वप्रमुख पेद्दन था, जिसने मनुरचित अथवा स्वारोचितसंभव नामक ग्रंथ की रचना की थी! 

उसी प्रकार तेनालीराम ने पांडुरंग महात्मय तथा नन्दीतीम्मन ने परिजातापहरण की रचना की थी! कृष्णदेवराय भी स्वयं विद्वान थे, उन्होंने तेलुगु भाषा में आमुक्तमाल्यद तथा संस्कृत भाषा में जामबवंतीकल्याणम व उषापरिणय की रचना की थी! 

विजयनगर साम्राज्य की स्थापत्य कला (vijaynagar samrajya ki Sthapatya kala) –

कृष्णदेव राय ने कला के क्षेत्र में योगदान दिया था! उन्होंने अपनी माता नागलादेवी के नाम पर नागलपुर नमक नगर की स्थापना की थी तथा हजारा मंदिर और विट्ठलस्वामी का मंदिर एवं चिदंबरम मंदिर का निर्माण करवाया! कृष्णदेव राय एवं रामराय अच्छे संगीतज्ञ भी थे! विजयनगर में लिपाक्षी कला (चित्रकला) तथा यक्षिणी शैली (नृत्य व संगीत) प्रचलित थी! 

विजयनगर साम्राज्य के मंदिर की विशेषता (vijaynagar samrajya ke mandir ki visheshta) – 

(1) विजयनगर के दौर में एक नवीन मंडप प्रचलन में आया, जिसे “कल्याण मंडप” कहा जाता था! 

(2) इस काल में मंदिर के ढांचे और गठन में काफी विस्तार आया! खंभों वाले पंडाल, मंडप और दूसरे गौंण ढॉंचे जोड़कर पुराने मंदिरों के आकार को फैलाया गया! 

(3) मुख्य मंदिरों के साथ सहायक मंदिरों की एक श्रृंखला का निर्माण किया गया, जिसे ‘अम्मनशिरीन’ कहा गया। 

(4) विजयनगर के मंदिरों में इस्तेमाल हुए स्तंभ, संगीत का गुण रखते थे, इसलिये इन स्तंभों को ‘संगीतात्मक स्तंभ’ भी कहा गया, जैसे- विजय विट्ठल मंदिर के स्तंभ।   

विजयनगर साम्राज्य की सामाजिक स्थिति या व्यवस्था vijaynagar samrajya ki samajik sthiti ya vyavastha) – 

समाज में ब्राह्मणों का विशेष महत्व था! वे बड़े-बड़े पदों को धारित करते थे तथा उन्हें मृत्युदंड भी नहीं दिया जाता था! निम्न जातियां दो समूह में विभाजित थी – दाया हाथ (वैष्णव) तथा बाया हाथ (शैव)! दाएं हाथ से जुड़ी जातियां कृषि और व्यापार से, जबकि बाएं हाथ से जुड़ी जातियां गैर कृषि एवं शिल्प से संलग्न थी! 

विजयनगर साम्राज्य के पतन के कारण (vijaynagar samrajya ke patan ke karan) – 

(1) कृष्‍ण देवराय के बाद के शासक उतने योग्‍य नहीं थे अतः वे बाहरी आक्रमणों एवं आंतरिक कलह का सामना नहीं कर सके! 

(2) बहमनी साम्राज्य के साथ निरंतर टकराव 

(3) 1565 में तालीकोटा के निकट बन्नीहट्टी में विजयनगर साम्राज्य की बुरी तरह हार हुई! इस युद्ध को राक्षस तंगड़ी या तालीकोटा का युद्ध भी कहा जाता है! 

(4) विजयनगर के अधिकांश शासक निरकुश थे, अतः वे जनता में लोकपिय्र नहीं हो सके! 

प्रश्न :- विजयनगर साम्राज्य का सबसे प्रतापी राजा कौन था?

उत्तर :- विजयनगर साम्राज्य का सबसे प्रतापी राजा कृष्ण देवराय थे! कृष्णदेवराय भी स्वयं विद्वान थे, उन्होंने तेलुगु भाषा में आमुक्तमाल्यद तथा संस्कृत भाषा में जामबवंतीकल्याणम व उषापरिणय की रचना की थी! कृष्णदेवराय अपनी माता नागलादेवी के नाम पर नागलपुर नमक नगर की स्थापना की थी तथा हजारा मंदिर और विट्ठलस्वामी का मंदिर एवं चिदंबरम मंदिर का निर्माण करवाया!

प्रश्न :- विजयनगर साम्राज्य की स्थापना कब हुई?

उत्तर :- हरिहर और बुक्का ने अपने गुरु विद्यारण्य संत के आशीर्वाद से 1336 में विजयनगर की स्थापना की! हरिहर एवं बुक्का ने अपने पिता संगम के नाम पर संगम राजवंश की स्थापना की! विजयनगर साम्राज्य की राजधानी हम्पी थी! विजयनगर साम्राज्य के खंडहर तुंगभद्रा नदी पर स्थित है!

प्रश्न :- विजयनगर साम्राज्य में बैग बैग प्रथा क्या थी?

उत्तर :- विजयनगर में दास प्रथा प्रचलित थी और दासों की खरीद बिक्री को बेसबग (वेसवग) कहा जाता था। पुरुष और महिला दोनों को दासों के रूप खरीदा बेचा जाता था! दासों की स्थिति मानवीय नियमों द्वारा शासित थी और उनके साथ बुरा व्यवहार नहीं किया जा सकता था।

प्रश्न :- विजयनगर साम्राज्य के खंडहर कहां पर मिले?

उत्तर :- हरिहर एवं बुक्का ने अपने पिता संगम के नाम पर संगम राजवंश की स्थापना की! विजयनगर की राजधानी हम्पी थी! विजयनगर – साम्राज्य के खंडहर तुंगभद्रा नदी पर स्थित है!

प्रश्न :- विजयनगर साम्राज्य में राजा को कहा जाता था?

उत्तर :- विजयनगर साम्राज्य में राजतंत्रात्मक शासन व्यवस्था प्रचलित थी! राज्य एवं शासन के मूल को राजा होता था, जिसे ‘राय’ कहा जाता था!

प्रश्न :- विजयनगर साम्राज्य का अंतिम शासक कौन था

उत्तर :- विजयनगर साम्राज्य का अंतिम शासक रंग तृतीय था, वह अराविदु राजवंश शासक था!

प्रश्न :- विजयनगर साम्राज्य का अंतिम राजवंश कौन सा था

उत्तर :- अराविडु वंश की स्थापना 1570 ईo के आसपास तिरुमल ने सदाशिव को अपदस्थ कर पेनुकोंडा में की थी। अराविडु वंश विजयनगर साम्राज्य का चौथा एवं अंतिम राजवंश था।

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