मूल्य क्या है (Values ya mulya kya hai) –
शाब्दिक रूप से नीतिशास्त्र के अंतर्गत मूल्यों (Values) से आशय मानदंड से है! यह मानदंड मानवीय जीवन के विभिन्न आयाम अर्थात मानवीय क्रियाओं, उद्देश्यों एवं व्यक्तित्व के निर्धारक तत्व के रूप में माना जाता है!
जहां तक मूल्यों के व्यावहारिक पक्ष का प्रश्न है, तो कहा जा सकता है कि यह मानवीय जीवन के वे विनियामक तत्व है, जो व्यक्ति को निर्देशित करते हैं कि क्या सही है और क्या गलत है अर्थात यदि संक्षेप में कहा जाए, तो मूल्य ऐसे सिद्धांतों का समुच्चय चाहिए जो मानवीय व्यक्तित्व के परिष्करण और परिमार्जन को न केवल दिशा देते हैं बल्कि व्यक्ति को उच्च मानदंडों वाले जीवन जीने के लिए प्रेरित भी करते हैं, जबकि भारतीय संस्कृति के अनुसार जीवन में मूल्य ही सत्य होते हैं!
जीवन के शुद्ध क्रियएं धर्म कहलाती है, धर्म में शांति, प्रेम और अहिंसा समाहित रहते हैं! यह पांच तत्व – सत्य, धर्म, शांति, प्रेम और अहिंसा-मानव मूल्य माने जाते हैं! यह भी माना जाता है कि मूल्यों का निर्धारण कर्म करता है!
मूल्य की अवधारणा (mulya ki avdharna) –
मूल्यों को सिखाया नहीं जा सकता बल्कि उन्है आत्मसात किया जाता हैं! मूल्य वास्तव में आचरण होते हैं मूल्यों का आचार विचार में ढालने की प्रक्रिया परिवार तथा माता-पिता से प्रारंभ होती है और बालक के समाजीकरण परिवार के सांस्कृतिक मूल्य आदि के द्वारा एक बालक संस्कारवान या संस्कारविहीन बनता है!
मूल्य की परिभाषा (Definition of value in hindi) –
mulya ki paribhasha इस प्रकार हैं –
अरबन के अनुसार “मूल्यों उसे कहते हैं जिनसे मनुष्य की इच्छाओं की तृप्ति की होती है!”
जओड के अनुसार “मूल्य के संबंध में, सत्य रूप में ऐसा प्रतीत होता है, जैसे किसी वस्तु का रंग व रूप, सुगंध, तापमान तथा आकार होता है!
जॉन डीवी के अनुसार – मूल्य का संबंध आंतरिक रुचियों से होता है, जिनका अनुमोदन समाज द्वारा किया जाता है और उनकी वस्तुनिष्ठ रूप में परख की जाती है!
श्री राधाकृष्ण मुकर्जी के अनुसार – मूल्य समाज द्वारा अनुमोदित उन इच्छाओं और लक्ष्यों के रूप में परिभाषित किए जा सकते हैं, जिन्हें अनुबंध, अधिगम या समाजीकरण की प्रक्रिया द्वारा आत्मसात किया जाता है और जो व्यक्तिगत मानकों तथा आकांक्षाओं के रूप में परिवर्तित हो जाते हैं!
मूल्य के प्रकार (mulya ke prakar) –
दृष्टिकोण के आधार पर –
दृष्टिकोण के आधार पर मूल्य दो प्रकार के होते हैं – सकारात्मक मूल्य एवं नकारात्मक मूल्य!
मूल्यों की विशेषताएं (Characteristics of human values in hindi) –
mulya ki visheshta इस प्रकार हैं –
(1) मूल्यों को सीखा जाता है! मूल्य जन्मजात नहीं होते है, बल्कि समाजीकरण की प्रक्रिया के माध्यम से सिखाए जाते हैं!
(2) मूल्य सामान्यतः स्थाई प्रकृति के होते हैं! परंतु कुछ विशेष परिस्थिति में बदलाव भी हो सकता है!
(3) मूल्य व्यक्तित्व के भीतर गहरे स्तर पर स्थित होते हैं एवं व्यक्ति की संपूर्ण मानसिकता को प्रभावित करते हैं!
(4) मूल्य कुछ हद तक आंतरिक भाव होते हैं, जो व्यक्ति के व्यक्तित्त्व में प्रतिबिम्बित होते हैं!
(5) विभिन्न मूल्य के मध्य एक सोपानिक स्तर होता है, अर्थात – हम अपने कुछ मूल्यों को दूसरे मूल्यों से बेहतर मानते हैं!
(6) मानवीय मूल्य अमूर्त होते हैं, अर्थात – उन्हें देखा नहीं जा सकता है! किंतु मूल्यों के आधार पर जो मानदंड या प्रतिमान निर्मित होते हैं, वह मूर्त होते हैं! उदाहरणार्थ – मूल्य यह है कि बड़ों का सम्मान करना चाहिए! इस मूल्य की अभिव्यक्ति अपने से उम्र में बड़े लोगों के चरण स्पर्श के रूप में होती है!
(7) किसी व्यक्ति, समाज एवं राष्ट्र की पहचान उन मूल्यों के द्वारा होतीं हैं, जिनका वह पालन करते हैं!
प्रशासन में नैतिक मूल्य (moral values in administration in hindi)-
प्रशासनिक कुशलता के लिए प्रशासनिक नैतिकता का होना आवश्यक है! एक लोकतांत्रिक देश में लोक सेवकों की छवि पदाधिकारीयों द्वारा प्रदर्शित नैतिक एवं नीतिपूर्ण मूल्य द्वारा ही निर्धारित होती है, यदि हमारे लोक सेवकों में निष्पक्षता, ईमानदारी और निष्ठा सुनिश्चित करने के लिए कई कानून, नियम एवं विनियम है, फिर भी प्रशासनिक शक्तियों की संभावना का क्षेत्र इतना व्यापक है कि औपचारिक कानूनों, प्रक्रिया से नियंत्रित नहीं हो सकता!
प्रजातांत्रिक मूल्यों को संरक्षित रखने में सिविल सेवकों की भूमिका –
आधुनिक लोक कल्याणकारी राज्य में लोक सेवाएं कार्यपालिका का स्थायी अंग तथा राज्य के लक्ष्यों को प्राप्त करने का सर्वाधिक महत्वपूर्ण साधन है! प्राचीन पुलिस राज्य में जबकि अहस्तक्षेप की नीति प्रभावी थी, तब लोक सेवाओं का स्वरूप इतना स्पष्ट तथा सशक्त नहीं था, किंतु आधुनिक लोक-कल्याणकारी राज्य पूर्णत: जन समर्थन तथा जन-सेवा पर टिका हुआ है!
लोक सेवाएं उसके आधार स्तंभ के रूप में कार्य कर रही हैं! प्रशासन राज्य की अवधारणा ने लोक सेवाओं की भूमिका को और अधिक महत्वपूर्ण बना दिया है! आज मानव जीवन के प्रत्येक पहलू के साथ लोकप्रशासन का संबंध है! और इस संबंध का आधार अर्थात इन्हें जोड़ने वाली कड़ी लोक सेवाएं ही है!
इस प्रकार वर्तमान विशेषीकरण तथा वैज्ञानिक युग में लोक सेवाएं समाज की प्रगति तथा और विकास का अविभाज्य व एकमात्र आधार बन गयी है! लोक सेवाओं की निष्ठा, ईमानदारी, कुशलता तथा नीतियों के कार्यान्वयन की दृढ़ता पर बहुत कुछ समकालीन लोक प्रशासन की सफलता तथा असफलता निर्भर करती है! इस कारण नौकरशाही में विशिष्टकरण की आवश्यकता होती है!
प्रश्न :- मूल्य किसे कहते हैं (mulya kise kahate hain)
उत्तर :- शाब्दिक रूप से नीतिशास्त्र के अंतर्गत मूल्यों से आशय मानदंड से है! यह मानदंड मानवीय जीवन के विभिन्न आयामों अर्थात मानवीय क्रियाओं, उद्देश्यों एवं व्यक्तिगत निर्धारक तत्व के रूप में माना जाता है! यदि संक्षेप में कहा जाए, तो मूल्य ऐसे सिद्धांतों का समुच्चय है, जो मानवीय व्यक्तित्व के परिष्करण और परिमार्जन को न केवल दिशा देते हैं, बल्कि व्यक्ति को उच्च मानदंडों वाले जीवन जीने के लिए प्रेरित भी करते हैं, जबकि भारतीय संस्कृति के अनुसार जीवन में मूल्य ही सत्य होते हैं!
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