ज्वारीय भित्ति क्या है (Tidal bore kya hai) –
जहाँ खुले व गहरे सागरों में ऊँधी उठी ज्वारीय लहर निरंतर गतिशील रहती हैं, वहीं छिछले सागरों, खाड़ियों व मुहाने के निकट उनको गति अवरोधित होने से पीछे से ज्वारीय लहर की बढ़ती हुई शक्ति के साथ आने वाला पानी मिलकर वहाँ दीवार की भांति एकत्रित होकर आगे की ओर तेज से बढ़ने लगता है।
अतः इसका अगला भाग दीवार की भांति खड़े या तेज ढाल वाला होता है। इस प्रकार जब लम्बी व संकरी खाड़ी में ज्वारीय लहर का पानी बाहरी चौड़े भाग में प्रवेश कर संकरे भाग में फँसने व दबने लगता है तो भी पानी की ऊँचाई तेजी से बढ़ती जाती है। इससे ज्वारीय भित्ति का विकास होता है।
इसी प्रकार चौड़े मुहाने वाली नदी की धारा में जब ज्वारीय लहर प्रवेश करती हैं तो वह नदी के बहाव की दिशा से विपरीत दिशा में बहने से भी तेजी से दबाव डालकर आगे बढ़ती है, इससे भी ज्वारीय भित्ति (Tidal Bore) के समान पानी खड़ा होकर आगे बढ़ने लगता है।
ऐसी स्थिति कुछ किलोमीटर तक संकरे मार्ग में सम्भव है। बाद में ज्वारीय लहर की शक्ति क्षीण होती जाती है एवं वह पुनः लौटने लगती है क्योंकि तब तक अर्थात् निश्चित समय पश्चात भाटे की स्थिति आ जाती है।
ज्वारीय भित्ति (jwariya bhitti) की जब भी ऊँचाई बहुत अधिक होती है या औसत से एकाएक बढ़ जाती है, तब वह विशेष विनाशकारी बन जाती है। इसके प्रभाव से इसके मार्ग में फँसने वाले जहाज या बड़ी नावें भी पलटकर या उलटकर नष्ट हो जाती है। डॉक यार्ड में खड़े जहाजों के लंगर भी एकाएक जल स्तर बढ़ने से टूट सकते है, अतः ऐसे समय को ध्यान में रखकर जहाजो के लंगर पहले से ही ढीले कर दिये जाते हैं, नहीं तो विशेष जन धन की हानि हो सकती है।
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