स्वदेशी आंदोलन क्या है (swadeshi andolan kya hai) –
स्वदेशी आंदोलन (swadeshi andolan) की शुरुआत 7 अगस्त 1905 ई. में कोलकाता के टाउन हॉल की ऐतिहासिक बैठक में की गई! बंगाल विभाजन के विरोध स्वरूप स्वदेशी आंदोलन की शुरुआत की गई! स्वदेशी आंदोलन से जुड़े प्रमुख नेता सुरेंद्र नाथ बैनर्जी, कृष्ण कुमार मित्र, पृथ्वी चंद्र राय, अरविंद घोष, तिलक, विपिन चंद्र पाल, लाला लाजपत राय आदि थे!
इस आंदोलन का दायरा महज राजनीति तक ही सीमित नहीं था, अपितु कला, साहित्य, संगीत, विज्ञान, उद्योग एवं अन्य क्षेत्रों पर भी इस आंदोलन का असर रहा!
स्वदेशी आंदोलन के कार्यक्रम Swadeshi andolan ke karyakram) –
(1) विदेशी वस्तुओं, सरकारी स्कूलों, अदालतों, नौकरियों, उपाधियों आदि का बहिष्कार!
(2) महिलाओं द्वारा विदेशी दुकानों पर धरना देना!
(3) आत्मनिर्भरता हेतु स्वदेशी शिक्षा, उद्योग, कला तथा विज्ञान को प्रोत्साहन देना!
(4) सामाजिक कुरीतियों, जैसे – बाल विवाह, दहेज, शराब आदि का विरोध करना!
(5) हड़ताल करके प्रशासन को पंगु बनाना!
स्वदेशी आंदोलन के कारण (swadeshi andolan ke karan) –
कर्जन ने 20 जुलाई 1905 ई. में बंगाल को दो हिस्सों में विभाजित कर दिया! एक हिस्से में पूर्वी बंगाल एवं असम को तथा दूसरे हिस्से में पश्चिम बंगाल, बिहार एवं उड़ीसा को रखा गया! इस विभाजन के विरोध स्वरूप स्वदेशी आंदोलन की शुरुआत हुई!
स्वदेशी आंदोलन के प्रभाव (Swadeshi andolan ke prabhav) –
स्वदेशी आंदोलन के सकारात्मक प्रभाव या महत्व (swadeshi andolan ke sakaratmak prabhav) –
(1) स्वदेशी आंदोलन के दौरान ही स्वराज्य की मांग की गई थी जो 1929 तक कांग्रेस की प्रमुख मांग बन गई!
(2) स्वदेशी आंदोलन में राष्ट्रवाद के प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई!
(3) इस आंदोलन के द्वारा नवीन कार्य पद्धति, जैसे – निष्क्रिय प्रतिरोध, असहयोग, बहिष्कार, सामाजिक सुधार आदि को अपनाया गया, जिसने भविष्य के गांधीवादी आंदोलन की पृष्ठभूमि तैयार की
स्वदेशी आंदोलन के नकारात्मक प्रभाव (swadeshi andolan ke nakaratmak prabhav) –
(1) आंदोलन के दौरान उदारवादी एवं उग्रवादी विवाद के परिणामस्वरूप 1907 ई. में कांग्रेस का विभाजन हो गया, जिसे सूरत विभाजन कहा जाता हैं!
(2) आंदोलन के दौरान अपनाए गए धार्मिक प्रतीकों एवं नारों ने सांप्रदायिकता को जन्म दिया!
(3) इस आंदोलन में कृषक वर्ग की महत्वपूर्ण सहभागिता नहीं रही!
(4) आंदोलन प्रायः शहरी क्षेत्र तक ही सीमित रहा
स्वदेशी आंदोलन की असफलता के कारण (swadeshi andolan ki asafalta ke karan) –
(1) कांग्रेस के विभाजन के कारण आंदोलन कमजोर हो गया!
(2) हालांकि स्वदेशी आंदोलन बंगाल से बाहर भी फैल चुका था, परंतु देश के बाकी हिस्से अभी भी नई राजनीतिक शैली और मंच को अपनाने के लिए तैयार नहीं थे!
(3) यह आंदोलन बड़े पैमाने पर उच्च और मध्यम वर्गों और जमींदारों तक ही सीमित रहा, विशेषकर किसानों तक पहुंचने में असफल रहा!
(4) क्रांतिकारी क्षमता को पहचानते हुए, अंग्रेज सरकार ने कठोर दमनात्मक प्रतिक्रिया व्यक्त की। 1907 और 1908 के बीच, आंदोलन के अधिकांश प्रमुख नेताओं को या तो जेल में डाल दिया गया या फिर निर्वासित कर दिया गया!
(5) आंदोलन से जुड़े महत्वपूर्ण नेता अरविंद घोष एवं विपिन चंद्र पाल ने सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लिया था!
(6) देसी आंदोलन के पास गांधीवादी आंदोलन का अनुरोध कोई प्रभावी संगठन एवं नेतृत्व नहीं था!
स्वदेशी आंदोलन का मूल्यांकन (swadeshi andolan ka mulyankan) –
प्रथम दृष्टत: प्रतीत होता कि स्वदेशी आंदोलन असफल रहा, क्योंकि यह आंदोलन बंगाल विभाजन के विरोध में शुरू हुआ था, परंतु यह विभाजन को रोक नहीं सका! इसके बावजूद इसे असफल कहना गलत होगा, क्योंकि स्वदेशी आंदोलन ने संपूर्ण भारत में राष्ट्रीय चेतना का संचार किया! वस्तुतः स्वदेशी आंदोलन उपनिवेशवाद के विरुद्ध प्रथम सशक्त आंदोलन था, जिसने गांधीवादी आंदोलन की पृष्ठभूमि निर्मित कर दी थी!
प्रश्न :- स्वदेशी आंदोलन कब हुआ था?
उत्तर :- स्वदेशी आंदोलन की शुरुआत 7 अगस्त 1905 ई. में कोलकाता के टाउन हॉल की ऐतिहासिक बैठक में की गई!
प्रश्न :- स्वदेशी आंदोलन का नेतृत्व किसने किया?
उत्तर :- स्वदेशी आंदोलन से जुड़े प्रमुख नेता सुरेंद्र नाथ बैनर्जी, कृष्ण कुमार मित्र, पृथ्वी चंद्र राय, अरविंद घोष, तिलक, विपिन चंद्र पाल, लाला लाजपत राय आदि थे!
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