सूरत विभाजन (surat vibhajan) –
1907 ई. में कांग्रेस के सूरत अधिवेशन में कांग्रेस दो भागों में विभाजित हो गई! इस अधिवेशन में गरमपंथियों को कांग्रेस से निकाल दिया गया! इस घटना को सूरत विभाजन (surat vibhajan) या सूरत की फूट कहा जाता हैं!
सूरत विभाजन के कारण (surat vibhajan ke karan) –
सूरत में हुए कांग्रेस के विभाजन के लिए निम्नलिखित कारण उत्तरदायी है –
(1) 1907 ई. में होने वाले कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन में अध्यक्ष पद को लेकर गरमपंथी एवं नरमपंथी नेताओं में मतभेद उत्पन्न हो गया था! गरमपंथी लाला लाजपत राय को नेता बनाना चाहते थे, परंतु इस अधिवेशन में नरमपंथियों ने रास बिहारी बोस को अध्यक्ष बनाया!
(2) बंगाल विभाजन के दौरान गरमपंथी स्वदेशी एवं बहिष्कार आंदोलन को बंगाल तक सीमित न रखकर उसे देश के अन्य भागों तक पहुंचाना चाहते थे! साथ ही वे विदेशी माल के बहिष्कार के अलावा ब्रिटेन को किसी तरह के सहयोग न दिए जाने की मांग कर रहे थे! परंतु इसके विपरीत नरमपंथी स्वदेशी व बहिष्कार को केवल बंगाल तथा विदेशी माल तक ही सीमित रखना चाहते थे!
(3) प्रारंभ में 1907 ई. में होने वाले कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन का स्थान नागपुर निश्चित किया गया था, किंतु यहां गरमपंथियों के अधिक प्रभाव को देखते हुए नरमपंथी नेता यह अधिवेशन सूरत में आयोजित करवाने में सफल रहे थे! इससे भी गरमपंथियों में आक्रोश था!
(4) सूरत विभाजन के पीछे प्रमुख कारण व्यक्तित्व की टकराहट थी! वस्तुतः इस अधिवेशन के पूर्व तिलक के शिष्य आगरकर रानाड़े खेमे में चले गए थे, जबकि तिलक तथा रानाड़े के गुट में व्यक्तिगत विरोध था!
सूरत विभाजन के परिणाम (surat vibhajan ke parinam) –
(1) सूरत विभाजन का स्वदेशी आंदोलन पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ा! इस विभाजन के पश्चात 1 वर्ष के अंदर स्वदेशी आंदोलन भी समाप्त होगा!
(2) अंग्रेजो को सुरत विभाजन से लाभ हुआ! अंग्रेजों ने गरमपंथी नेताओं पर सख्त कार्रवाई की तथा नरमपंथी की मांगों को भी नजरअंदाज किया!
(3) सूरत विभाजन का कांग्रेस पर विपरीत प्रभाव पड़ा! इस विभाजन के पश्चात कांग्रेस का सामाजिक आधार सीमित हो गया!
(4) भारत के राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ा तथा आंदोलन की गति धीमी हो गई!
सूरत विभाजन का निष्कर्ष (surat vibhajan ka nishkarsh) –
निष्कर्षत: यह कहा जा सकता है कि सूरत विभाजन का भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में विपरीत प्रभाव पड़ा था! हालांकि राष्ट्रीय नेताओं ने शीघ्र ही पारस्परिक सहयोग के महत्व को समझते हुए एक बार पुनः एकजुट होने का सफल प्रयास किया! फलतः 1916 ई. में लखनऊ में हुए कांग्रेस के अधिवेशन में गरमपंथी नेताओं को पुनः शामिल कर लिया गया!
प्रश्न :- सूरत विभाजन कब हुआ था
उत्तर :- सूरत विभाजन 1907 हुआ था!
प्रश्न :- सूरत अधिवेशन की अध्यक्षता किसने की?
उत्तर :- सूरत अधिवेशन की अध्यक्षता रास बिहारी बोस की थी!
प्रश्न :- कांग्रेस का विभाजन कब हुआ?
उत्तर :- कांग्रेस का विभाजन सूरत अधिवेशन में हुआ था, इसे सूरत विभाजन या सूरत की फूट कहते हैं!
प्रश्न :- 1907 में विभाजन के पश्चात कांग्रेस के दोनों दलों में एकता कब स्थापित हुई?
उत्तर :- 1907 में विभाजन के पश्चात कांग्रेस के दोनों दलों में एकता लखनऊ अधिवेशन 1916 में स्थापित हुई!
आपको यह भी पढना चाहिए –