सूफी आंदोलन क्या है? सूफी आंदोलन के प्रमुख सिद्वांत, विशेषताएं, प्रभाव

सूफी आंदोलन या सूफीवाद क्या है (sufi aandolan kya hai) –

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मध्यकालीन इतिहास में सूफी आंदोलन इस्लाम का रहस्यवादी, उदारवादी एवं समन्वयवादी आंदोलन था! एक धर्म के रूप में सूफी मत का विकास नवी सदी ईस्वी में हुआ था! जो लोग सूफी संतों की शिष्यता ग्रहण करते थे, उन्हें मुरीद कहते हैं! 

सूफी शब्द की उत्पत्ति (Sufi shabad ki utpatti) –

सूफी शब्द की उत्पत्ति के संबंध में इतिहासकारों में मतभेद है! इतिहासकारों के अलग-अलग मतों को निम्नलिखित बिंदुओं के अंतर्गत समझा जा सकता है –

(1) प्रथम मत के अनुसार सूफी शब्द की उत्पत्ति अरबी भाषा के शब्द सफा से हुई है, जिसका अर्थ है – पवित्रता! इस मत के अनुसार जो लोग पवित्र आचरण का पालन करते थे वे सूफी कहलाए! 

(2) द्वितीय मत के अनुसार सूफी शब्द की उत्पत्ति सफ शब्द से हुई है, जिसका अर्थ है – पंक्ति! इस मत के अनुसार जो लोग नवाज के लिए पंक्तिबद्ध खड़े होने के अनुशासन का पालन करते थे, वे सूफी कहलाए!  

(3) तृतीय मत के अनुसार सूफी संत की उत्पत्ति यूनानी भाषा के सोफिया शब्द से हुई है – जिसका अर्थ है घूमने फिरने वाला! इस मत के अनुसार जो लोग इस्लाम धर्म के प्रचार प्रसार हेतु यहां वहां घूमते फिरते रहते थे वे सूफी कहलाए! 

(4) चतुर्थ मत के अनुसार सूफी शब्द की उत्पत्ति अरबी भाषा के सूफ शब्द से हुई है, जिसका अर्थ है ऊनी वस्त्र! इस मत के अनुसार आठवीं शताब्दी में खुरासन एवं ईरान जैसे ठंडे प्रदेशों में इस्लाम का प्रचार प्रसार करने वाले लोग ठंड से बचने हेतु ऊनी वस्त्र पहनते थे, अतः वे सूफी कहलाए! उपयुक्त सभी मतों में यही मत सर्वाधिक मान्यता प्राप्त है! 

कालांतर में सुफी शब्द का प्रयोग इस्लाम धर्म के उन संतों एवं धर्म उपदेशों के लिए किया जाने लगा, जो उदार एवं रहस्यवादी विचार में विश्वास रखते थे तथा रूढ़िवादी उलेमाओं के विचारों से असंतुष्ट थे!

सूफी आंदोलन का विकास (sufi aandolan ka vikash) – 

यद्यपि सूफी आंदोलन का मूलाधर इस्लाम था, किंतु हिंदू वेदांत, बौद्ध, यूनानी, इरानी एवं ईसाई धर्म के कतिपय सिद्धांतों ने सूफी विचारधारा को प्रभावित किया! साथ ही मध्ययुगीन राजनीतिक, आर्थिक एवं सामाजिक परिस्थितियों का सूफी मत पर प्रभाव पड़ा! 

इस्लाम धर्म में कुछ ऐसे अनुयाई हुए, जिन्होंने कुरान की रूढ़िवादी व्याख्या के बजाय की उदारवादी व्याख्या (तरीके) का समर्थन किया! इस्लाम धर्म के ऐसे ही उदार एवं प्रगतिशील धर्मोंपदेशक सूफी कहलाए! आगे जब इस्लाम धर्म का भारत सहित ईरान, यूनान एवं यूरोप में प्रभाव स्थापित हुआ, तो सूफी मत में इन नवीन क्षेत्रों की मान्यता भी शामिल कर ली गई! यही कारण के सूफी मत में हमें विभिन्न धर्मों की विचारधारा एवं मान्यताएं दिखाई देती! 

यहां उल्लेखनीय है कि सूफी मत के विकास में तत्कालीन राजनीतिक, आर्थिक एवं सामाजिक परिस्थितियों का भी योगदान था! वस्तुतः इस्लाम धर्म के प्रभाव में वृद्धि के साथ-साथ शासक वर्ग की निरंकुशता, खलीफा एवं उलेमाओं की राजसी ठाट बाट एवं अमीर वर्ग का गरीबों के प्रति शोषण भी बढ़ता गया! 

ऐसी परिस्थिति में सूफी संतों ने शासक वर्ग से राजनीतिक दूरी रखी, आर्थिक क्षेत्र में धन का तिरस्कार एवं सन्यास की बजाय ग्रस्त जीवन में रहते हुए जीविका उपार्जन पर बल दिया! उसी प्रकार सामाजिक अन्याय ने सूफी संतों की सामाजिक विचारधारा को प्रभावित किया तथा मानव सेवा एवं दरिदों का उत्थान जैसे विचारों का समर्थन किया!  

सूफी आंदोलन के उद्देश्य (sufi aandolan ke uddeshy) –

सूफीवाद के प्रमुख उद्देश्य इस प्रकार हैं –

(1) सूफी संत इस्लाम के उदारवादी एवं रहस्यवादी व्याख्या में विश्वास करते थे! 

(2) मानवतावादी समाज का निर्माण चाहते थे! 

(3) मानव जाति का आध्यात्मिक उत्थान चाहते थे! 

(4) सूफी संत भी मूर्ति पूजकों के देश को इस्लामी देश में बदलना चाहते थे, किंतु शांतिपूर्ण एवं नैतिक साधनों से! 

सूफी आंदोलन के प्रमुख सिद्वांत (sufi aandolan ke Sidhant) – 

(1) सूफी संतों का प्रधान आदर्श था – मारिफत या वस्तु, अर्थात – आत्मा को परमात्मा में लीन कर देना! 

(2) सूफी संत बृहदत-उल-वजूद के सिद्धांत को स्वीकार करते थे, इसके अनुसार आत्मा का परमात्मा में पूर्ण एकाकार, अर्थात तल्लीन हो सकती है! 

(3) सूफी संतों की मान्यता थी आत्मा, इच्छा अर्थात तृष्णा के कारण नाना प्रकार के दुख भोगती है! यदि आत्मा को परमात्मा में पूरी तरह से लीन कर दिया जाए, तो आत्मा को यह ज्ञान प्राप्त हो जाएगा कि अन-अहलक (मैं ही ब्रह्म हूं) का बोध हो जाएगा तथा आत्मा पार्थिव शरीर का त्याग कर देगी, अर्थात फना हो जाएगी! इस प्रकार आत्मा परमात्मा में पूर्णतः लीन हो जाएगी! इस अवस्था को सूफीवाद में वका कहा गया है! 

साधन – 

सूफी संतों ने परमात्मा में लीन होने हेतु संगीत (समा), नृत्य (रक्स), योग तथा ध्यान को साधन के रूप में अपनाया था! 

सूफी आंदोलन की विशेषताएं (sufi aandolan ki visheshta) – 

सूफी आंदोलन की प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार हैं –

(1) सूफी आंदोलन इस्लाम का उदारवादी आंदोलन था! सूफी संतों ने इस्लाम के रूढ़िवादी व्याख्या (शरीयत) की जगह उसकी उदारवादी व्याख्या (तरीयत) को स्वीकार किया! 

(2) सूफी संतों ने इस्लाम धर्म के आडंबरों, कर्मकांडों एवं बाहरी दिखावे का विरोध किया! 

(3) सूफी संतों ने राजनीतिक वर्ग से दूरी बनाए रखी है तथा किसी भी शासक का संरक्षण स्वीकार नहीं किया! 

(4) सूफी संतों ने जातिप्रथा, अस्पृश्यता, लिंगभेद, मद्यपान आदि का विरोध किया था सहज सरल जीवन पद्धति एवं नैतिकता पर बल दिया! 

(5) संतो ने सन्यास के बजाय गृहस्थ जीवन में रहते हुए ही जीविकोपार्जन पर बल दिया! 

(6) सूफी आंदोलन इस्लाम का समन्वयवादी आंदोलन था! सूफी संतों ने अपने विचारों में इस्लाम, वेदांत, बौद्ध, ईरान, यूनान, अरब आदि धर्मों के विचारों का समन्वय किया! साथ ही उन्होंने शासक-शासित, अमीर-गरीब, हिंदू-मुस्लिम के मध्य समन्वय पर बल दिया! 

(7) सूफी आंदोलन इस्लाम धर्म का रहस्यवादी आंदोलन था! सूफी संतों की रहस्यवादी मान्यता थी कि जीवन का प्रमुख लक्ष्य आत्मा को परमात्मा में लीन कर देना है, जिससे वहदतुल वुजूद कहा गया! 

(8) सूफी संतों ने तत्कालीन भाषा! साहित्य एवं संगीत के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई! 

सूफी आंदोलन का महत्व (sufi aandolan ka mahatv) – 

(1) आर्थिक – 

सन्यास का समर्थन न करते हुए जीविकोपार्जन हेतु काम करने को कहा! 

(2) सामाजिक – 

इस आंदोलन ने समाज में व्याप्त ऊंच-नीच अमीर गरीब अस्पृश्यता तथा जाति प्रथा को दूर करने का प्रयास किया! 

(3) राजनीतिक – 

इस आंदोलन में शासक वर्गों को उदारवादी दृष्टिकोण हेतु प्रेरित किया! 

(4) धार्मिक –

इसने धार्मिक समन्वय एवं हिंदू-मुस्लिम सहिष्णुता पर बल दिया! 

(5) भाषा और साहित्य –

भाषा एवं साहित्य के विकास में महत्वपूर्ण योगदान है संगीत समारोह का आयोजन किया जाता था! 

सूफी आंदोलन के प्रभाव या योगदान (sufi aandolan ka prabhaav)

(1) सामाजिक प्रभाव –

सूफी संतों ने जातिप्रथा अस्पृश्यता, लिंगभेद, दासप्रथा, मद्यपान, वेश्यावृत्ति आदि का विरोध किया तथा सामाजिक समरसता एवं नैतिक मूल्य पर बल दिया! 

(2) आर्थिक प्रभाव – 

सूफी संतों ने मुनाफाखोरी एवं भ्रष्टाचार का विरोध किया तथा आर्थिक स्वावलंबन  को बढ़ावा देने हेतु जीविकोपार्जन पर बल दिया! 

(3) राजनीतिक प्रभाव –

सूफी संत ने उदारवादी एवं समाजवादी विचारों ने तत्कालीन शासक वर्ग को उदारवादी नीति अपनाने हेतु प्रेरित किया! उदाहरणार्थ – अकबर की विभिन्न वर्गों के प्रति नीति! 

(4) धार्मिक प्रभाव – 

सूफी संतों ने इस्लाम की उदारवादी व्याख्या कर इसे लोकप्रिय बनाया! उन्होंने यह सिद्ध किया कि इस्लाम केवल हिंसा और कट्टरता पर ही आधारित नहीं है! 

(5) सांस्कृतिक प्रभाव – 

सूफी संतों ने भाषा, साहित्य एवं संगीत के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया! उर्दू भाषा के विकास में सूफी संत का विशेष योगदान था! उर्दू भाषा का विकास सूफी खानकाहों में हुआ! वस्तुतः सूफी संत एक ऐसी भाषा का विकास करना चाहते थे जो विभिन्न लोगों के मध्य संपर्क भाषा का काम कर सके!  

इसी उद्देश्य की पूर्ति हेतु उर्दू भाषा का विकास हुआ, क्योंकि उर्दू भाषा में अरबी एवं फारसी के साथ-साथ हिंदी भाषा की शब्दावली भी शामिल थी! उसी प्रकार पंजाबी भाषा के विकास में बाबा फरीद एवं उनके शिष्य हुसैनशाह व बुल्लेशाह का महत्वपूर्ण योगदान था, जिन्होंने अपने विचार का प्रचार प्रसार पंजाबी भाषा में किया! 

प्रमुख सूफी संप्रदाय (Pramukh sufi samudaay)- 

(1) चिश्ती सिलसिला +chishti silsila) – 

भारत में चिश्ती सिलसिला की स्थापना ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती ने की थी! मोइनुद्दीन चिश्ती गौरी के आक्रमण के समय भारत आए तथा अंतिम रूप से अजमेर में बस गए!  मोइनुद्दीन चिश्ती के 2 प्रमुख शिष्य – कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी एवं शेख हमीदउ्ददीन नागौरी! 

(2) सुहरावर्दी सिलसिला (suhrawardi silsila)-

सुहरावर्दी सिलसिले के संस्थापक बहाउद्दीन जकारिया (1182 – 1262) थे! चिश्ती संप्रदाय के बाद भारत में दूसरा सबसे अधिक लोकप्रिय संप्रदाय सुहरावर्दी संप्रदाय रहा! इस परंपरा पर रूढ़िवादी विचारों का प्रभाव था! इस शाखा के संत शासकों के संपर्क में रहे तथा उनसे प्रश्रय प्राप्त किए! वह प्रशासनिक पदों को भी ग्रहण करते थे! उनका प्रभाव मुख्यतः पश्चिम भारत, सिंध और मुल्तान में ही केंद्रित था! 

(3) कादरिया या कादरी सिलसिला (qadri silsila) –

कादरी सिलसिले के संस्थापक अब्दुल कादिर जिलानी थे! मुगल शासक शाहजहाँ का पुत्र दाराशिकोह इसी सिलसिले का अनुयाई था! 

(4) कलंदरी सिलसिला – 

इस सिलसिले के संत घुमक्कड़ फकीर होते थे तथा वे इस्लामी  कानून का पालन नहीं करते थे! अत: इन्हें निंदनीय माना जाता था! इनका कोई आध्यात्मिक गुरु अथवा संगठन नहीं था! वे सिर मुंडांते थे तथा हिंदू नागाओं की भांति अपने हाथ पैर, कान तथा शरीर के अन्य अंगों में लोहे के छल्ले डालते थे! 

प्रश्न :- सूफी आंदोलन क्या है

उत्तर :- मध्यकालीन इतिहास में सूफी आंदोलन इस्लाम का रहस्यवादी, उदारवादी एवं समन्वयवादी आंदोलन था! एक धर्म के रूप में सूफी मत का विकास नवी सदी ईस्वी में हुआ था! जो लोग सूफी संतों की शिष्यता ग्रहण करते थे, उन्हें मुरीद कहते हैं! 

प्रश्न :- भारत में सूफीवाद का संस्थापक कौन थे

उत्तर :- भारत में सूफीवाद का संस्थापक ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती थे! भारत में चिश्ती सिलसिला की स्थापना ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती ने की थी! मोइनुद्दीन चिश्ती गौरी के आक्रमण के समय भारत आए तथा अंतिम रूप से अजमेर में बस गए! 

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