रूढ़िवादिता क्या है (Rudhivadita kya hai)-
रूढ़िवादिता (Rudhivadita) शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम वाल्टर लिपमैन अपनी पुस्तक पब्लिक ऑपिनियन में 1922 में एक सामान्य अर्थ में किया था! रुढियुक्तियां पूर्वकल्पित विचार होती हैं जो विभिन्न समूह के बारे में बने रहते हैं!
किसी समूह के सदस्यों के बारे में विश्वासों का ऐसा संग्रह जिसमें विवेकपूर्ण आधार की कमी होती है, रूढ़िवादिता कहलाता है!
किसी समूह के सभी सदस्यों को उनके विशिष्ट गुणों एवं विशेषताओं होने के बावजूद सामान्य ढंग से प्रत्यक्षीकृत किया जाता है! रुढियुक्ति में किसी समूह के सदस्यों के बारे में एक स्थूल सामान्यीकरण किया जाता है, जिसमें व्यक्तिक विभिन्नता पर बिल्कुल ही ध्यान नहीं दिया जाता हैं तथा साथ ही साथ इस ढंग का सामान्यीकरण नयी सूचनाओं को दिए जाने पर भी परिवर्तित नहीं होता है! रूढियों का उपयोग अक्सर स्वचालित ढंग से होता है!
रूढ़िवादिता की परिभाषा (rudhivadita ki paribhasha) –
प्रो. एस. के दुबे – रूढ़िवादिता का आशय सामाजिक गतिविधियों, नियमों, सिद्धांतों एवं परंपराओं के प्रचलन से है जिनका कोई वैज्ञानिक, तार्किक एवं मानवीय आधार नहीं होता तथा समाज में पारंपरिक रूप से प्राचीन काल से वर्तमान समय तक चली आ रही है और आधुनिकीकरण के मार्ग में बाधा उत्पन्न करती है!
श्रीमती आर के शर्मा रूढ़िवादिता का आशय सामाजिक व्यवहार से होता है जो कि पूर्णत: अतार्किक, अमनोवैज्ञानिक एवं अमानवीय आधार पर किया जाता है और जिसके मूल में अज्ञानता एवं अंधविश्वासों का समावेश होता है!
रूढ़िवादिता के प्रकार (rudhivadita ke prakar) –
(1) स्वभावगत रूढ़िवादिता!
(2) स्थितिगत रूढ़िवादिता!
(3) राजनीतिक रूढ़िवादिता!
(1) स्वभावगत रूढ़िवादिता (swabhavgat rudiwadita) –
रूढ़िवादी एक विधिवत जीवन तथा कार्य संचालन शैली के विरुद्ध परिवर्तनों को रोकने हेतु प्राकृतिक एवं सुसांस्कृतिक प्रवृत्ति है! रॉस्सीटर के अनुसार – रूढ़िवाद, प्रभावी रूप से, एक स्वभावगत एवं मनोवैज्ञानिक अवस्थिति है, विशेषताओं का एक समूह है जो सभी समाजों में अधिकांश लोगों द्वारा प्रदर्शित किया जाता है! वे रूढ़िवादी स्वभाव के आवश्यक तत्व को इस प्रकार बताते हैं – अभ्यस्तता, जड़त्व, भय और स्पर्धा!
(2) स्थितिगत रूढ़िवादिता (sthitigat rudiwadita) –
स्थितिगत रूढ़िवादिता के अंतर्गत सामाजिक, आर्थिक, कानूनी, धार्मिक, राजनीतिक अथवा सांस्कृतिक व्यवस्था में वित्तीय परिवर्तनों का विरोध किया जाता है! इस रूढ़िवादी का प्रभेदक लक्षण परिवर्तन का भय है, जो राजनीतिक क्षेत्र में परिवर्तित हो जाता हैं और जैसे कि रॉस्सीटर कहता है आमूलवाद के भय में परिवर्तित हो जाता है! यह आमूलवाद उन लोगों से संबंधित है जो पुराने मूल्यों , संस्थाओं तथा जीवन स्तर की शैलियों को नष्ट कर नए विश्व व्यवस्था की रचना का सुझाव देते हैं!
(3) राजनीतिक रूढ़िवादिता (rajnithik rudiwadita) –
राजनीतिक रूढ़िवाद, उन राजनीतिक दलों तथा आंदोलन की आकांक्षाएँ तथा क्रियाएँ हैं, जो विरासत में प्राप्त नैतिकता के पैटर्न तथा सिद्भ संस्थाओं को मान्यता देते हैं! यह दल तथा आंदोलन की नम्र वामपंथियों के सुधारात्मक योजनाओं तथा उग्र वामपंथियों की परियोजनाओं का विरोध करते हैं!
रुढियुक्तियां या रूढ़िवादिता की विशेषताएं (Rudhivadita ki visheshta in hindi)-
रूढ़िवादिता की विशेषताएं इस प्रकार है –
रुढियुक्तियां या रूढ़िवादिता की विशेषताएं निम्न हैं –
(1) रूढ़िवादिता एक मानसिक प्रतिमा है!
(2) रूढ़िवादिता में एक पूर्णरूपेण सम्मत विश्वास होता है!
(3) रूढ़िवादिता में स्थूल एवं अतिरंजित सामान्यीकरण होता है!
(4) रूढ़िवादिता सकारात्मक या नकारात्मक कुछ भी हो सकती है!
(5) रूढ़िवादिता विश्वास को एक समूह होता है जिसके आधार पर हम एक निश्चित वर्ग में विभाजित होते हैं!
(6) रूढ़िवादिता में सामान्यता परिवर्तन नहीं होता है!
(7) किसी वर्ग या समूह का मात्र सदस्य होना इस बात के लिए काफी है कि उससे उस वर्ग या समूह के सभी शीलगुण होंगे ही!
(8) किसी वर्ग की कुछ निश्चित विशेषताएं, जो शारीरिक या सामाजिक या सांस्कृतिक हो सकती है, निर्धारित कर दी जाती है जिसके आधार पर समान वर्ग के सदस्यों को पहचान लिया जाता है!
(9) रूढ़िवादिता में किसी वर्ग या समूह के व्यक्तियों के बारे में जो विश्वास कायम हो जाता है उसमें परिवर्तन लाना साधारणतया संभव नहीं होता है! जैसे कोई कार्यपालिक इंजीनियरिंग कितनी भी अपनी सफाई क्यों न दें परंतु, लोग मानने को तैयार नहीं होंगे कि उसके पास आपकी धन नहीं है!
रूढ़िवादिता के प्रभाव या दुष्परिणाम (rudhivadita ke prabhav) –
(1) रूढ़िवादिता समावेशी विकास में बाधक होती है!
(2) वैश्विक ग्राम संकल्पना मैं रूढ़िवादिता बाधक है!
(3) नवाचारों को बढ़ावा देने में बाधक है!
(4) रूढ़िवादिता राष्ट्रीय एकता में बाधक है क्योंकि रूढ़िवादिता के कारण व्यक्ति अन्य व्यक्तियों से सामंजस्य नहीं कर पाता हैं!
भारत में रूढ़िवादिता (Bharat me rudhivadita)-
वस्तुत रूढिवादिता किसी वर्ग या समुदाय के लोगों के बारे में एक ऐसी मानसिक प्रतिमा है, जिसके आधार पर हम उस वर्ग के व्यक्तियों में कुछ एक शीलगुणों या विशेषताओं को आरोपित करते हैं! जैसे – दलित के बारे में ऐसा ऊंची जाति के मन में एक विशेष प्रतिमा बन गई है कि जिसके आधार पर वह दलितों को गंदे, अनपढ़, कमजोर समझते हैं!
रूढ़िवादिता में किसी वर्ग के व्यक्तियों के बारे में एक विश्वास होता है जिस पर आम सहमति होती हैं. जैसे – सभी हिंदू पत्नियों में आम सहमति है कि चाहे भला हो या बुरा उसका पति ही उसके लिए देवता है!
उपरोक्त विश्लेषण के आधार पर हम कह सकते हैं कि सामाजिक जीवन में रूढ़ि युक्तियों का अधिक महत्व है क्योंकि इसका प्रभाव सामाजिक अंत: क्रियाओं पर सीधा पड़ता है! प्रत्येक समाज एवं संस्कृति में कुछ निश्चित रूढियुक्तियां होती है! जिनके आधार पर हम किसी वर्ग या समुदाय के लोगों के बारे में एक सामान्य अर्थ लगाते हैं तथा जिससे हमें सामाजिक अंत: क्रिया करने में मदद मिलती है!
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