रैयतवाड़ी व्यवस्था क्या है? रैयतवाड़ी व्यवस्था की विशेषताएं तथा गुण और दोष, उददेश्य

रैयतवाड़ी व्यवस्था क्या है (What is ryotwari system in hindi) –

रैयतवाड़ी व्यवस्था (ryotwari vyavastha) मुख्यतः मद्रास एवं बाम्बे प्रेसीडेंसी मैं लागू की गई थी! 1799 ई. में टीपू तथा 1818 ई. में मराठों को पराजित करने के पश्चात अंग्रेजों का अधिकार मद्रास एवं बाम्बे में भी हो गया था! इन नवविजित क्षेत्रों से भी आर्थिक लाभ प्राप्त करने हेतु यहां पर भू राजस्व व्यवस्था के रूप में रैयतवाड़ी व्यवस्था लागू की गयी थी! 

इसके अंतर्गत ब्रिटिश भारत का 51℅ भाग शामिल था! यह व्यवस्था सर्वप्रथम 1792 ई. में कर्नल रीड के द्वारा बारामहल क्षेत्र में लागू की गई थी, आगे इस व्यवस्था को 1820 ई. में मुनरो ने मद्रास प्रेसिडेंसी में तथा 1825 में एल्फिस्टन के द्वारा बाम्बे प्रेसिडेंसी में लागू किया गया! इन क्षेत्रों में अपनाई गई व्यवस्था के अंतर्गत चूंकि अनुबंध कृषकों के साथ किया गया था, अत: उसे रैयतवाड़ी व्यवस्था कहा गया! यह 30 वर्षों के लिए लागू की गई थी और इसकी दर 1/3 निश्चित की गई!

रैयतवाड़ी व्यवस्था के उद्देश्य एवं कारण (Objectives and reasons of Ryotwari system in hindi) –  

रैयतवाड़ी व्यवस्था को अपनाने के पीछे निम्नलिखित कारण एवं उद्देश्य थे –

(1) स्थाई बंदोबस्त व्यवस्था के अंतर्गत जमीदारों के द्वारा कृषकों का अत्यधिक शोषण किया गया था! साथ ही दूरस्थ जमीदारी के कारण कृषि के विकास हेतु भी नगण्य प्रयास किए गए थे! अत: इन समस्याओं को ध्यान में रखते हुए नवीन भू राजस्व व्यवस्था को अपनाया गया! 

 (2) स्थाई बंदोबस्त में अंग्रेजों को कृषि उत्पादन में वृद्धि के साथ-साथ राज्य समिति स्तर लाभ प्राप्त नहीं हो रहा था आता अंग्रेजों ने मद्रास एवं मुंबई में अस्थाई अनुबंध किया! 

(3) दक्षिण एवं पश्चिम भारत में उत्तर भारत के जमीदारों की तरह कोई स्पष्ट वर्ग नहीं था, अतः अंग्रेजों ने सीधे कृषकों के लिए साथ अनुबंध किया! 

(4) मुनरो तथा एल्फिस्टन जैसे अधिकारियों पर उपयोगितावादी विचारधारा का प्रभाव था! जिनका मानना था कि जमीदारी वर्ग अनुत्पादक वर्ग होता है अतः भू राजस्व अनुबंध सीधे कृषकों के साथ किया जाना चाहिए!  

रैयतवाड़ी व्यवस्था की विशेषताएं (ryotwari vyavastha ki visheshtaon ko likhe) – 

(1) रैयतवाड़ी व्यवस्था में भू राजस्व का प्रबंधन और स्थाई रूप से 10 से 40 वर्षों के लिए किया गया था समय-समय पर इस का पुननिरीक्षण और पुननिर्धारण भी किया जाता था! 

(2) इस व्यवस्था में भू राजस्व की राष्ट्रीय उत्पादन का 50 से 60% तक निर्धारित की गई थी! 

(3) इस व्यवस्था में भूमि का स्वामित्व कृषकों को दिया गया कृषि भूमि का क्रय विक्रय कर सकते थे किंतु लगान की अदायगी न होने पर भूमि जब्त की जा सकती थी! 

रैयतवाड़ी व्यवस्था के गुण या सकारात्मक प्रभाव (Positive effects or merits of Ryotwari system in hindi)-

(1) रैयतवाड़ी व्यवस्था में भूमि का स्वामी कृषकों को माना गया था तथा उन्है भूमि के विक्रय का अधिकार भी दिया गया था! 

(2) इस व्यवस्था में सरकार एवं रैयतों के मध्य प्रत्यक्ष संबंध स्थापित हो गया था! 

(3) रैयतवाड़ी व्यवस्था में भूमि के सर्वेक्षण के उपरांत उत्पादक शक्ति के आधार पर भू राजस्व का निर्धारण किया गया था! साथ ही कृषकों को यह छूट दी गई थी कि वे जिस भूमि को जितना चाहे उस प्रकार की भूमि को ग्रहण करें! 

रैयतवाड़ी व्यवस्था के दोष या नकारात्मक प्रभाव (Negative Effects or Defects of Ryotwari System in hindi) –

(1) प्रारंभ में तो भूमि की उत्पादक सख्ती के आधार पर भू-राजस्व का निर्धारण किया गया था, किंतु आगे अनुमान के आधार पर कृषकों पर बहुत अधिक भू-राजस्व निश्चित किया गया था! 

(2) इस व्यवस्था में कृषकों के साथ अनुबंध स्थाई रूप से नहीं किया गया था! साथ ही कृषकों की आर्थिक स्थिति भी मजबूत नहीं थी! फलतः कृषकों ने कृषि विकास हेतु कोई महत्वपूर्ण प्रयास नहीं किए! 

(3) इस व्यवस्था में भूमि का स्वामित्व नाममात्र के लिए कृषकों को दिया गया था! वास्तव में भू राजस्व की राशि बहुत अधिक होती थी, जिससे कृषक भू-राजस्व की राशि नहीं चुका पाते थे! परिणामस्वरूप उन्हें अपनी भूमि गवानी पड़ती थी! 

(4) इस पद्धति में भूमि को विक्रय बना दिया गया था, जिससे भूमि के विखण्डीकरण को प्रोत्साहन मिला! इससे अनेक समस्याएं उत्पन्न हुई! प्रथम, न्यायिक विवाद बढे़, उत्पादन में कमी आई, भूमि का मूल्य बढ़ गया तथा चूंकि धनवान वर्ग ही भूमि खरीद सकता था, निर्धन नहीं, अत: इससे धनवान और अधिक धनी तथा निर्धन और अधिक निर्धन होते चले गए! 

(5) इस व्यवस्था में भू राजस्व प्राय: नगद के रूप में ही वसूला जाता था, जिससे कृषक नगदी कृषि करने हेतु विवश हुए! वस्तुतः खाद्यान्न वस्तुओं की कीमत कम होती थी, जबकि नगदी फसलों की अधिक!  अत: कृषक नकदी फसलों की खेती कर ही भू-राजस्व चुका सकते थे; किंतु वाणिज्यिक कृषि से कृषकों को अनेक प्रकार की हानियां हुई! प्रथम खाद्यान्न की मात्रा कम हो गई, जिससे भुखमरी की स्थिति निर्मित हो गई! द्वितीय वाणिज्य खेती को प्रारंभ करने में कृषकों को महाजन या साहूकार से ऋण लेना होता था जिससे वह ऋणग्रस्त हो रहे थे! 

प्रश्न :- अंग्रेजों ने रैयतवाड़ी बंदोबस्त कहां लागू किया था?

उत्तर:- इसके अंतर्गत ब्रिटिश भारत का 51℅ भाग शामिल था! यह व्यवस्था सर्वप्रथम 1792 ई. में कर्नल रीड के द्वारा 12 बारामहल क्षेत्र में लागू की गई थी, आगे इस व्यवस्था को 1820 ई. में मुनरो ने मद्रास प्रेसिडेंसी में तथा 1825 में एल्फिस्टन के द्वारा बाम्बे प्रेसिडेंसी में लागू किया गया!

प्रश्न :- रैयतवाड़ी व्यवस्था कब लागू की गई

उत्तर :- रैयतवाड़ी व्यवस्था सर्वप्रथम 1792 ई. में कर्नल रीड के द्वारा 12 बारामहल क्षेत्र में लागू की गई थी, आगे इस व्यवस्था को 1820 ई. में मुनरो ने मद्रास प्रेसिडेंसी में तथा 1825 में एल्फिस्टन के द्वारा बाम्बे प्रेसिडेंसी में लागू किया गया! इन क्षेत्रों में अपनाई गई व्यवस्था के अंतर्गत चूंकि अनुबंध कृषकों के साथ किया गया था, अत: उसे रैयतवाड़ी व्यवस्था कहा गया! 

प्रश्न :- रैयतवाड़ी भू-राजस्व व्यवस्था किसके द्वारा लागू की गई

उत्तर :- यह व्यवस्था सर्वप्रथम 1792 ई. में कर्नल रीड के द्वारा 12 बारामहल क्षेत्र में लागू की गई थी, आगे इस व्यवस्था को 1820 ई. में मुनरो ने मद्रास प्रेसिडेंसी में तथा 1825 में एल्फिस्टन के द्वारा बाम्बे प्रेसिडेंसी में लागू किया गया! इन क्षेत्रों में अपनाई गई व्यवस्था के अंतर्गत चूंकि अनुबंध कृषकों के साथ किया गया था, अत: उसे रैयतवाड़ी व्यवस्था कहा गया! 

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