मनसबदारी प्रथा क्या थी (What is mansabdari system in hindi upsc) –
मुगल शासन प्रणाली की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता मनसबदारी प्रथा (mansabdari pratha) थी इसकी जानकारी अबुल फजल तथा मुतमिद खां के विवरण से मिलती हैं! मनसब फारसी शब्द है, जिसका अर्थ पद होता है! अत: मनसबदार शब्द का प्रयोग पदाधिकारी के लिए किया जाता था! मनसबदारी व्यवस्था के अंतर्गत अमीर वर्ग, सैनिक एवं सिविल तीनों प्रकार के दायित्वों का एकीकरण किया गया था!
अकबर ने मनसबदारी व्यवस्था 1567 ई. में प्रारंभ की थी, जो कि मंगोलों की दशमलव पद्धति पर आधारित थी! यद्यपि प्रेरणा मंगोल सैन्य पद्धति से मिलती थी, परंतु अकबर ने आवश्यकतानुसार इसमें कुछ परिवर्तन कर इसे लागू किया था! अकबर ने 1573-74 में सैनिकों का हुलिया (तसबीह) लिखे जाने तथा घोड़े एवं हाथियों को दागने की प्रथा आरंभ की थी!
इसके लिए दाग-महाली नामक एक पृथक विभाग खोला गया था! प्रत्येक घोड़ों पर एक राज्य का निशान तथा एक मनसबदार का निशान अंकित कर दिया जाता था, ताकि निरीक्षण के समय वे एक-दूसरे घोड़े को आपस में बदल ना सकें! प्रत्येक मनसबदार की सेना और घोड़ों का समय-समय पर, प्रत्येक वर्ष या प्रत्येक तीसरे वर्ष, निरीक्षण किया जाता था!
मनसबदारों की नियुक्ति में मीर बक्शी बादशाह के सामने प्रत्याशियों को प्रस्तुत करता था! बादशाह स्वयं मनसबदार की नियुक्ति करता था! नियुक्ति में यद्यपि योग्यता को पर्याप्त महत्व दिया जाता था, परंतु खानजादों को प्राथमिकता दी जाती थी! मनसबदारों का पद वंशानुगत नहीं था, किंतु स्थानांतरणीय होता था! निम्न श्रेणी के मनसबदार उच्च श्रेणी के मनसबदार के देखरेख में कार्य करते थे, परंतु उसके अधीन नहीं होते थे!
अकबर के शासन के 40 वें वर्ष (1595-96) में मनसबदारी व्यवस्था में जात व सवार रैंक का आरंभ किया गया था! प्रत्येक मनसबदार का रैंक (दर्जा) दो अंको में व्यक्त किया जाने लगा! प्रथम अंक – जात रैंक का द्वितीय अंक सवार रैंक का बोधक होता था!
जात रैंक से किसी भी मनसबदार की श्रेणी, मनसबदारों के बीच उसका स्थान तथा उसका वेतन निर्धारित होता था, जबकि सवार रैंक से निर्धारित होता था कि संबंधित मनसबदार के द्वारा कितनी सेना रखी जाती है! अकबर ने संपूर्ण मनसबों को 66 श्रेणियों में विभाजित किया था, परंतु अबुल फजल ने 33 श्रेणियों का उल्लेख किया है जात रैंक के आधार पर मनसबदारों की मुख्यतः 3 श्रेणी होती थी –
(1) 10 से 500 जात रैंक – मनसबदार!
(2) 500 से 2500 जात रैंक तक – अमीर!
(3) 2500 से अधिक जात रैंक तक – अमीर उल उमदा!
प्रायः 5,000 से अधिक जात रैंक की मनसबदारी राजपरिवारों के लिए सुरक्षित होती थी! दाराशिकोह को 60,000 जात रैंक की मनसबदारी मिली हुई थी!
एक अन्य दृष्टिकोण से मनसबदारों की तीन श्रेणियां होती थी –
(1) प्रथम श्रेणी के मनसबदार – सवार रैंक, जात रैंक के बराबर
(2) द्वितीय श्रेणी के मनसबदार – सवार रैंक जात रैंक से आधा या आधे से अधिक!
(3) तृतीय श्रेणी के मनसबदार – सवार रैंक, जात रैंक के आधे से कम!
किसी भी स्थिति में सवार रैंक जात रैंक से अधिक नहीं हो सकता था! परंतु जब मनसबदार कठिन क्षेत्र में काम कर रहा होता था, तो कई बार उसे सशर्त पद प्रदान किया जाता था! इसमें कुछ समय के लिए बिना जात रैंक को बढा़ए सवार रैंक को बढ़ा दिया जाता था ताकि खजाने पर अतिरिक्त बोझ डाले बिना सैनिकों की संख्या में बढ़ोतरी की जा सके! इसे मशरूत मनसब कहा जाता था!
जहांगीर ने अपने शासनकाल में 10 वर्ष में दो अस्पा – सिंह अस्पा व्यवस्था लागू की थी! इसमें जात रैंक को बढ़ाएं बिना सवार रैंक दोगुना कर दिया जाता था! जहांगीर के शासनकाल में ऐसा पद सर्वप्रथम महाब्रत खां को प्राप्त हुआ था!
मनसबदारी प्रथा के लाभ या विशेषताएं (Benefits or features of Mansabdari system in hindi) –
मनसबदारी व्यवस्था मुगल प्रशासन की मेरुदंड थी! इस व्यवस्था ने सारे राज्य में प्रशासन की एकरूपता लाई, जिससे राजनीति एकीकरण का मार्ग प्रशस्त हुआ!
इस व्यवस्था से जाति एवं सामंती प्रवृत्तियाँ कमजोर पड़ी, क्योंकि प्रत्येक मनसबदार को विभिन्न जातियों एवं संप्रदायों के सैनिकों को रखना पड़ता था! इसके कारण उनके भी सहयोग की भावना बढ़ी और धर्म, जाति अथवा क्षेत्र के बदले सम्राट के प्रति स्वामी भक्ति की भावना प्रबल हुई!
मनसबदारी व्यवस्था से सामंत पर सम्राट का प्रभावी नियंत्रण स्थापित हो सका! अब मनसबदार की स्थिति अन्य प्रशासकों के समान हो गई, जो निश्चित वेतन एवं सेवा शर्तों के अनुसार साम्राज्य का प्रशासन चलाते थे! इससे बादशाह की शक्ति में वृद्धि हुई!
इसके अतिरिक्त इस व्यवस्था से योग्यता के अनुसार हर व्यक्ति को प्रशासनिक एवं सैनिक कार्यों में भाग लेने का अवसर प्राप्त हुआ! इससे साम्राज्य को योग्य प्रशासक एवं सेनानायक को की सेवा प्राप्त हो सकी!
मनसबदारी प्रथा से हानि या आलोचना (Harm or criticism from Mansabdari system in hindi) –
मनसबदारी व्यवस्था में कई दोष भी थे! ये अतिकेंद्रीकृत व्यवस्था थी! तथा इसकी कार्यक्षमता सम्राट के व्यक्तित्व पर निर्भर करती थी! जहां योग्य एवं कुशल प्रशासकों द्वारा इस प्रणाली को लाभदायक रूप से प्रयोग किया जा सकता था! वही औरंगजेब की मृत्यु के उपरांत कमजोर एवं अनुभवहीन मुगल शासकों के समय इस व्यवस्था का सही ढंग से काम करना संभव नहीं रहा!
इस व्यवस्था में विभिन्न जातियों एवं संप्रदायों का समागम था! शक्तिशाली सांसों के समय उनके मध्य एकता एवं सहयोग बना रहा, परंतु कमजोर एवं अनुभवहीन शासकों के समय ये एक दूसरे के विरुद्ध संघर्षरत हो गए इसके कारण प्रशासन की एकता को बनाए रखना कठिन हो गया और साम्राज्य का पतन निश्चित हो गया!
मनसबदारों को वेतन के रूप में जागीरें दी जाती थी, उन जागीरो से प्राप्त होने वाले अनुमानित राजस्व को जमादामी तथा वास्तविक राजस्व को हासिलदामी कहा जाता था! जमादामी व हासिलदामी के इस अंतर के कारण मुगल दरबार में गुटबंदी होने लगी, इससे परवर्ती काल में राजनीतिक विकेंद्रीकरण की प्रक्रिया तीव्र हो गई!
मनसबदारोंं को वेतन मुख्यतः जागीर के रूप में दिया जाता था! इस व्यवस्था ने जागीरदारी संकट का रूप ले लिया! मनसबदारोंं को दी गई जागीरें दो प्रकार की होती थी! प्रथम जिन जागीरों से भू राजस्व आसानी से वसूल किया जा सकता था, उन्हें सैर-ए-हासिल जागीर कहते थे, जबकि जिन जागीर से भू-राजस्व वसूल करने में कठिनाई होती थी उन्हें जोरतलब जागीर कहा जाता था!
स्वाभाविक रूप से मुगल दरबार में सैर-ए-हासिल जागीरो के लिए मनसबदारोंं में प्रतिस्पर्धा होने लगी! इसने गुटबंदी को प्रोत्साहित किया! परिणामस्वरुप मुगल प्रशासन व्यवस्था पूर्णतः चरमरा गई!
मनसबदारी प्रथा का मूल्यांकन upsc (Evaluation of Mansabdari System in hindi) –
इस प्रकार मनसबदारी व्यवस्था सही नेतृत्व के अधीनस्थ अत्यंत महत्वपूर्ण एवं उपयोगी संस्था सिद्ध हुई, जिसने मुगल साम्राज्य में एकता एवं सुव्यवस्था को बनाए रखने में निर्णय भूमिका निभाई, लेकिन जब व्यवस्था कमजोर पड़ गई, तो फिर मुगल साम्राज्य का पतन अवश्यगामी हो गया!
मनसबदारी प्रथा से संबंधित प्रश्न –
प्रश्न :- मनसबदारी प्रथा कहाँ से ली गयी थी
उत्तर :- अकबर ने मनसबदारी प्रथा 1567 ई. में प्रारंभ की थी, जो कि मंगोलों की दशमलव पद्धति पर आधारित थी! यद्यपि प्रेरणा मंगोल सैन्य पद्धति से मिलती थी, परंतु अकबर ने आवश्यकतानुसार इसमें कुछ परिवर्तन कर इसे लागू किया था! अकबर ने 1573-74 में सैनिकों का हुलिया (तसबीह) लिखे जाने तथा घोड़े एवं हाथियों को दागने की प्रथा आरंभ की थी!
प्रश्न :- मनसबदारी प्रथा कब शुरू हुई
उत्तर :- मनसबदारी व्यवस्था अकबर ने 1567 ई. में प्रारंभ की थी, जो कि मंगोलों की दशमलव पद्धति पर आधारित थी! यद्यपि प्रेरणा मंगोल सैन्य पद्धति से मिलती थी, परंतु अकबर ने आवश्यकतानुसार इसमें कुछ परिवर्तन कर इसे लागू किया था!
प्रश्न :- मनसबदारी प्रथा की शुरुआत किसने की
उत्तर :- अकबर ने मनसबदारी प्रथा 1567 ई. में प्रारंभ की थी, जो कि मंगोलों की दशमलव पद्धति पर आधारित थी! यद्यपि प्रेरणा मंगोल सैन्य पद्धति से मिलती थी, परंतु अकबर ने आवश्यकतानुसार इसमें कुछ परिवर्तन कर इसे लागू किया था!
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