ब्रिटिश शासन का भारतीय अर्थव्यवस्था एवं समाज पर प्रभाव

ब्रिटिश शासन का भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव (british shasan ka bhartiya arthvyavastha par prabhav) –

ब्रिटिश आर्थिक नीति के अंतर्गत मुख्यता ब्रिटिश भू राजस्व व्यवस्था, कृषि का व्यवसायीकरण, वि-औद्योगिकरण, रेलवे का विकास तथा धन के निष्कासन आदि का अध्ययन किया जाता है; ब्रिटिश शासन का भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव इस प्रकार है –

(1) भू राजस्व व्यवस्था – 

भारत में ब्रिटिश भू-राजस्व नीति का मुख्य उद्देश्य अधिकाधिक धन प्राप्त करना था, ताकि इस धन के उपयोग से एक मजबूत सैनिक एवं प्रशासनिक संगठन की स्थापना की जा सके और ब्रिटिश साम्राज्य भारत का विस्तार एवं उसका सुदृढ़ीकरण किया जा सके! ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारी स्वतंत्र व्यापार पर विश्वास करते थे, इसलिए उन्होंने आयात तथा निर्यात कर से अधिक धन प्राप्त करने के बजाय भू राजस्व के माध्यम से ही अधिकाधिक धन प्राप्त करने का प्रयास किया! 

ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार द्वारा भारत में अनेक प्रकार की भू-राजस्व व्यवस्था को लागू किया गया था! प्रायः सभी प्रकार की भू-राजस्व व्यवस्था के मुख्यतः दो उद्देश्य थे – प्रथम, अधिकाधिक धन प्राप्त करना! दूसरा, कृषकों की सुरक्षा! किंतु इन दोनों उद्देश्यों में आंतरिक विरोधाभास था! 

परंतु प्रथम उद्देश्य की पूर्ति कृषकों के शोषण के उपरांत ही हो सकती थी! यही कारण है कि सभी प्रकार की भू-राजस्व व्यवस्था में ब्रिटिश सरकार को तो आर्थिक लाभ हुआ, किंतु कृषकों की स्थिति दयनीय हो गई! कुल मिलाकर ब्रिटिश को राजनीति से किसानों का निर्धनीकरण, ग्रामीण ऋणग्रस्तता, महाजनी प्रथा की दासता, उत्पादन में कमी आदि समस्याओं का विस्तार हुआ ! 

(2) कृषि का व्यवसायीकरण- 

कृषि के व्यवसायीकरण से तात्पर्य खाद्यान्न फसलों के स्थान पर नकदी फसलों का उत्पादन करना! कृषकों को भू-राजस्व की एक बड़ी राशि नगद के रूप में देना होती थी. जो कि खाद्यान्न फसलों के बिक्री से संभव नहीं थी, इसलिए किसान नकदी फसल उत्पादन के लिए बाध्य हुए! ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत में चाय, कॉफी, अफीम, कपास, आदि नकदी फसलों की कृषि पर बल दिया गया ! 

कृषि के व्यवसायीकरण से स्वनिर्भर ग्रामीण अर्थव्यवस्था विश्व अर्थव्यवस्था से जुड़ गई! कृषि का पूंजीवाद रूपांतरण हुआ! कुछ विशेष क्षेत्र जैसे महाराष्ट्र एवं कृष्णा-कावेरी डेल्टा आदि में कृषकों का एक समृद्धशाली वर्ग अस्तित्व में आया! 

परंतु भारत में नगदी फसलों के आगमन के साथ कृषि में तकनीकी विकास नहीं हुआ, जिससे न तो अपेक्षित उत्पादन हो सका और नहीं कृषि योग्य भूमि का विकास हो सका! नकदी फसलों का लाभ मुख्यता मध्यस्थ वर्ग को ही प्राप्त हुआ, क्योंकि कृषक नकदी फसलों को व्यापारियों महाजनों एवं जमीदारों के माध्यम से ही बाजार में बेचते थे नकदी फसलों के उत्पादन से आर्थिक असमानता बढ़ी! जहां मध्यस्थ वर्ग धनवान, वही कृषक गरीब होते गए! 

(3) वि-औद्योगिकरण – 

वि-औद्योगीकरण से तात्पर्य किसी देश के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि का योगदान बढ़ते जाना एवं उद्योगों का योगदान कम होते जाना! वि-औद्योगिकरण के परिणामस्वरूप भारत में हस्तशिल्प उद्योग का पतन हो गया! 

प्लासी के युद्ध के बाद अंग्रेजों द्वारा बंगाल के दस्तकारों एवं शिल्पियों का शोषण किया गया! अंग्रेजों ने भारत में हस्तशिल्प से जुड़े लोगों को कच्चा माल प्राप्त करने में रुकावट पैदा की! साथ ही शक्ति के बल पर उन्हें अंग्रेजों के लिए काम करने हेतु विवश किया ! 

परंतु भारत में ब्रिटेन एवं पश्चिमी यूरोप की तरह हस्तशिल्प उद्योग का पतन के साथ आधुनिक उद्योगों का विकास नहीं हुआ! हस्तशिल्प उद्योग को छोड़ने वाले लोगों ने कृषि को अपना लिया, जिसे कृषि पर अतिरिक्त बोझ बढा़! फलतः कृषि उत्पादन प्रभावित हुआ तथा ग्रामीण ऋणग्रस्तता बढी़! 

(4) रेलवे का विकास – 

भारत में ब्रिटिश शासन के अंतर्गत किए गए निर्माण कार्य में सर्वाधिक महत्वपूर्ण कार्य प्रणाली का विकास माना जाता है भारत में प्रथम रेल लाइन 1853 में मुंबई से थाने के बीच तथा 1905 में 45 हजार किमी. लंबी रेल लाइन बिछाई जा चुकी थी! 

रेलवे के परिणामस्वरूप भारत में प्रशासन की एकरूपता आयी! इससे प्रशासनिक दक्षता में वृद्धि हुई! साथ ही रेलवे ने राष्ट्रवाद के प्रचार प्रसार में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई! रेलवे के माध्यम से ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों के बाजारों की भौगोलिक दूरी कम हो गई, इससे भारतीय अर्थव्यवस्था का एकीकरण हुआ! लोग रेल के डिब्बों में साथ-साथ यात्रा करते थे! रेलवे स्टेशनों में खाना-पीना करते थे, जिसे परंपरागत जातिबंधन तथा छुआ-छूत का प्रभाव कम होने लगा! 

परंतु रेलवे की सहायता से अंग्रेजों ने राष्ट्रवादी आंदोलन का सफलतापूर्वक दमन किया! रेलवे के माध्यम से ब्रिटिश उद्योग के लिए भारत के दूरदराज के क्षेत्र से कच्चा माल प्राप्त किया जा सका तथा क्षेत्रों में निर्मित माल को पहुचाया जा सका! इससे भारत के हस्तशिल्प उद्योगों को न तो कच्चा माल प्राप्त हो सका और न ही सस्ता बाजार, परिणामस्वरुप शिल्प उद्योग का पतन हो गया! साथ ही रेलवे के निर्माण हेतु ब्रिटिश सरकार द्वारा कृषकों पर अधिकाधिक राजस्व प्राप्त करने का प्रयास किया गया, जिससे कृषकों के शोषण को प्रोत्साहन मिला! रेलवे ने विसंस्कृतिकरण एवं सामाजिक संघर्षों को जन्म दिया!  

(5) धन का निष्कासन – 

धन के निष्कासन से तात्पर्य भारतीय धन संपदा का विदेशों में घमंड और उसके बदले भारत का कोई भी प्राप्त न होने से है सरवन दादा भाई नौरोजी ने 1867 में ‘इंग्लैंड डेप्ट टू इंडिया’ नामक लेख में धन निकासी सिद्धांत का प्रतिपादन किया था! 

धन निकासी ने भारत में राष्ट्रीयता के विकास में अपना योगदान दिया! कुछ भारतीय अर्थशास्त्रियों ने धन की निकासी का सिद्धांत प्रतिपादित कर अंग्रेजों की शोषणमूलक चरित्र को उजागर किया तथा ब्रिटिश औपनिवेशिक हितों के खिलाफ आवाज उठाई! इससे भारतीयों में राष्ट्रीयता की भावना का विकास हुआ! 

परंतु लगातार धन निष्कासन होने से अधिशेष पूंजी का निर्माण नहीं हो सका! इससे भारत में निवेश की संभावना समाप्त हो गई तथा रोजगार एवं प्रति व्यक्ति आय में बहुत कमी आई! कुल मिलाकर भारत में “अविकास के विकास” का सबसे बड़ा कारण धन की निकासी ही थी!

धन की निकासी से कृषि उत्पादन में गिरावट, हस्तशिल्प उद्योग का पतन एवं आधुनिक उद्योगों का विकास अवरुद्ध हो गया! धन निकासी से इंग्लैंड में औद्योगिक विकास हुआ जिससे ब्रिटिश साम्राज्यवाद का कार्य आसान हो गया!

ब्रिटिश शासन का भारतीय अर्थव्यवस्था पर काफी नकारात्मक प्रभाव रहा है या ब्रिटिश शासन का भारतीय अर्थव्यवस्था प्रतिकूल प्रभाव रहा है!

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