
फ्रांस की क्रांति (France ki Kranti) –
1789 की फ्रांसीसी क्रांति आधुनिक विश्व के इतिहास की असाधारण घटना थी! 18वीं शताब्दी के अंतिम चरण में गठित यह युगांतकारी घटना कुछ ऐसे महत्वपूर्ण सिद्धांतों को कार्य रूप में परिणत करने का प्रयास था जिनसे इस शताब्दी के प्रबुद्ध फ्रेंच नागरिक अच्छी तरह परिचित था! यह सिद्धांत थे – स्वतंत्रता, समानता, व्यवस्था और बंधुत्व! अंत में यही सिद्धांत इस क्रांति के मुख्य नारा बना!
फ्रांसीसी क्रांति के कारण (francisi kranti ke karan) –
फ्रांस में क्रांति का विस्फोट क्यों और कैसे हुआ? इसे समझने के लिए पुरातन व्यवस्था का सर्वेक्षण करना आवश्यक है! यहां पुरातन व्यवस्था से आशय कति के पहले की व्यवस्था से इसके अंतर्गत फ्रांस की राजनीतिक सामाजिक, तथा आर्थिक व्यवस्था का विश्लेषण करके ही हम उन जटिल समस्या को समझ सकते हैं, जिन्होंने क्रांति की पृष्ठभूमि तैयार की!
फ्रांसीसी क्रांति के राजनीतिक कारण (france ki kranti ke rajnitik karan) –
फ्रांसीसी राजतंत्र का गला वस्तुत: उसकी निरंकुशता ने हीं घोंट दिया! फ्रांस में निरंकुश व वंशानुगत राजतंत्र था! क्रांति से पूर्व फ्रांस में व्यक्तिगत स्वतंत्रता का पूर्ण अभाव था
राजा द्वारा नियुक्त एवं उसी के प्रति उत्तरदाई अधिकारी किसी भी व्यक्ति को ‘लात्र द काशे’ नामक वारंट जारी कर गिरफ्तार व बिना मुकदमा चलाए कैद कर सकते थे! सरकारी पदों पर नियुक्ति योग्यता के आधार पर नहीं, बल्कि जन्मतिथि या क्रय शक्ति आधार पर होती थी! ऐसे सभी कर्मचारी अयोग्य, अकर्मण्य व भष्ट होते थे!
क्रांति से पूर्व फ्रांस में एक समान विधि संहिता का अभाव था! पूरे देश में लगभग 380 प्रकार के कानून प्रचलित थे! एक कस्बे में जो बात वैध थी, वही बात दूसरे स्थान पर अवैध हो जाती थी! इससे जनता को कई प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ता था तथा उनमें असंतोष था!
फ्रांसीसी क्रांति के सामाजिक कारण (francisi kranti ke samajik karan) –
फ्रांसीसी समाज तीन वर्गों में विभक्त था प्रथम इस्टेट में पादरी वर्ग, द्वितीय इस्टेट में कुलीन वर्ग, तृतीय स्टेट में जनसाधारण वर्ग शामिल था! पादरी एवं कुलीन वर्ग को व्यापक विशेषाधिकार प्राप्त थे, जबकि जनसाधारण अधिकारविहीन था!
इस प्रकार फ्रांस की क्रांति दो परस्पर विरोधी गुटों के संघर्ष का परिणाम थी! एक और राजनीतिक दृष्टिकोण से प्रभावशाली वर्ग (कुलीन वर्ग) था, जबकि दूसरी और आर्थिक दृष्टि से प्रभावशाली वर्ग (मध्यमवर्ग) था! देश की राजनीति और सरकार पर प्रभुत्व कायम करने के लिए इन दोनों वर्गों में संघर्ष अनिवार्य था!
फ्रांसीसी क्रांति के बौद्धिक कारण (francisi kranti ke baudhik karan) –
फ्रांसीसी क्रांति में दार्शनिकों की भूमिका के संबंध में दो प्रकार के मत दिखाई देते हैं! कुछ इतिहासकारों का कहना है कि दार्शनिकों ने ही फ्रांसीसी क्रांति को जन्म दिया तथा बिना दार्शनिकों के क्रांति संभव ही नहीं थी! जबकि कुछ अन्य इतिहासकारों ने फ्रांसीसी क्रांति में दार्शनिकों की प्रभावी भूमिका को अस्वीकार किया है!
वस्तुत: तो हम कह सकते हैं कि फ्रांसीसी क्रांति पुरातन व्यवस्था में निहित बुराइयों तथा विभिन्न वर्गों में मौजूद तनाव के कारण प्रारंभ हुई थी! दार्शनिकों का महत्व इस बात में है कि उन्होंने न केवल जनता को विरोध करने हेतु प्रेरित किया, बल्कि क्रांति के दौरान प्रचलित नारों – स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व को जनता के बीच प्रचारित किया! साथ ही क्रांति के बाद जो भी संवैधानिक परिवर्तन हुए, उनमें भी दार्शनिकों के महान विचारों की अभिव्यक्ति मिलती है!
फ्रांसीसी क्रांति के आर्थिक कारण (francisi kranti ke aarthik karan) –
पक्षपातपूर्ण कर व्यवस्था, राज परिवार का विलासितापूर्ण जीवन, विदेशी युद्धों में खर्च, बढ़ता हुआ राष्ट्रीय ऋण, अभिजात वर्ग का प्रतिक्रियावादी दृष्टिकोण, प्रांतीय चुंगियॉ तथा राजकीय अपव्ययिता आदि कुछ ऐसी बातें थी जिन्होंने राजकोष की स्थिति को अत्यंत सोचनीय बना दिया था!
फ्रांसीसी क्रांति के परिणाम या प्रभाव (france ki kranti ke prabhav ya parinam) –
फ्रांस की कुछ विशेष परिस्थितियों के कारण क्रांति का विस्फोट फ्रांस में ही हुआ किंतु इस असाधारण घटना से यूरोप तथा संसार के अधिकांश देशों को किसी न किसी रूप में प्रभावित किया! फ्रांसीसी क्रांति के दौरान गूंजे स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के नारों ने वैश्विक राजनीति में आमूलचूल परिवर्तन का मार्ग प्रशस्त किया! फ्रांस की क्रांति का फ्रांस तथा विश्व पर कुछ इस प्रकार प्रभाव पड़ा!
(1) स्वतंत्रता समानता और बंधुत्व के नारे का प्रसार –
फ्रांसीसी क्रांति के दौरान गूंजे स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के नारों ने वैश्विक राजनीति में आमूलचूल परिवर्तन का मार्ग प्रशस्त किया! क्रांति के कारण फ्रांस में बने संविधान में नागरिक स्वतंत्रता को प्रमुख स्थान दिया गया! आने वाले समय में स्वतंत्रता विश्व की एक प्रमुख आवश्यकता बन गई!
(2) लोकतंत्र का प्रसार –
फ्रांसीसी क्रांति द्वारा मानव एवं नागरिकों के अधिकारों की घोषणा सारे विश्व के लिए लोकतंत्र का शंखनाद था! राष्ट्रीय संविधान सभा के एक प्रतिनिधि ने कहा था कि यह घोषणा सारे देशों, सारे युगों और सारे मनुष्यों के लिए है! जाहिर है कि क्रांति का उद्देश्य लोकतंत्र और विश्व बंधुता की भावना को फ्रांस तक सीमित रखना नहीं था! दुनिया में कई देशों में लोकतंत्रवाद के लिए आज भी संघर्ष जारी है!
(3) राष्ट्रीयता की भावना का विकास –
फ्रांसीसी क्रांति ने जन जन में राष्ट्रवाद की भावना पैदा की इसने राज भक्ति को देश भक्ति में परिवर्तित कर दिया राष्ट्रवाद का प्रसाद यूरोप के अन्य देशों में भी हुआ तथा उन देशों में भी पराधीनता के मुक्ति हेतु प्रयास तीव्र हो गए!
फ्रांसीसी क्रांति ने जिन नई प्रवृत्तियों को जन्म दिया उनमें अत्यंत महत्वपूर्ण है राष्ट्रीयता की भावना का विकास जो लोग धर्म, भाषा, संस्कृति और सभ्यता की दृष्टि से एक होते हैं, उनमें एक राष्ट्र के रूप में संगठित होने की भावना निहित रहती है!
(4) सैन्यवाद का विकास –
फ्रांसीसी क्रांति ने सैन्यवाद को जन्म दिया! आतंक के राज्य के दौरान नागरिकों के लिए भी सैनिक सेवा अनिवार्य कर दी गई थी! आगे चलकर यही सैन्यवाद नेपोलियन के साम्राज्यवाद और प्रथम विश्व युद्ध का कारण बना!
(5) समाजवाद का मार्ग प्रशस्त-
फ्रांसीसी क्रांति ने समाजवाद का मार्ग भी प्रशस्त किया! नेशनल कनवेंशन के काल में प्रस्ताव पारित किए गए की कीमतों पर सरकारी नियंत्रण स्थापित हो, वस्तुओं का अधिकतम मूल्य सरकार द्वारा निर्धारित हो, गरीबों की सहायता की जाए और युद्ध खर्च को पूरा करने के लिए धनवानों पर कर लगाया जाए !
फ्रांस की क्रांति का सारांश (The French Revolution Summary In Hindi) –
फ्रांसीसी क्रांति एक ऐसी क्रांति थी, जिसका प्रारंभ तो एक कुलीन वर्ग ने किया, किंतु आगे इसका का नेतृत्व मध्य वर्ग ने संभाला! कुछ समय के लिए क्रांतिकारी तत्व के प्रभाव में रही, जबकि इसका अंत सैनिक तानाशाह के साथ हुआ! इस तरह फ्रांसीसी क्रांति विशाल नदी की तरह थी, जो उच्च पर्वत शिखर से प्रारंभ होकर मार्ग में अनेक छोटे-मोटे पर्वतों को लांघती हुई कभी तीव्र कभी मंद गति से प्रवाह मान रही!
फ्रांसीसी क्रांति विश्व इतिहास की एक युगांतरकारी घटना थी इसने एक तरफ जहां स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्व, राष्ट्रवाद, जनतंत्रवाद जैसे मूल्यों का प्रसार संपूर्ण विश्व में किया, तो दूसरी तरफ आधुनिक तानाशाही व सैनिकवाद की नीव भी रखी!
प्रश्न :- फ्रांस की क्रांति कब शुरू हुई
उत्तर :- 5 मई 1789 – 9 नवंबर 1799
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