इंग्लैंड की क्रांति 1688 (Revolution of England in hindi) –
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इंग्लैंड की क्रांति से तात्पर्य 1688 ई. में हुई गौरवशाली क्रांति या रक्तहीन क्रांति से है! इसे गौरवशाली क्रांति या रक्तहीन क्रांति इसलिए कहा जाता है, क्योंकि इस क्रांति में किसी भी व्यक्ति के रक्त की एक बूंद भी नहीं बही और केवल प्रदर्शन एवं वार्तालाप सही क्रांति सफल हो गई!
इस क्रांति के उपरांत इंग्लैंड के राजा जेम्स द्वितीय को राजसिंहासन गवाना पड़ा तथा उसकी पुत्री मेरी एवं दामाद विलियम को संयुक्त शासक बनाया गया! इंग्लैंड में राजा की जगह संसद की सर्वोच्चता स्थापित हो गई!
इंग्लैंड की क्रांति के कारण (England ki kranti ke karan) –
इंग्लैंड की क्रांति के प्रमुख कारण इस प्रकार है –
(1) जेम्स द्वितीय की निरंकुशता –
स्वभाव से जेम्स द्वितीय अहंकारी, अधीर और हठधर्मी था! वह देवी अधिकार सिद्धांत में विश्वास करता था ,इसलिए वह राजा के निरंकुश सत्ता में भी विश्वास रखता था! वह धार्मिक स्वतंत्रता का पोषक नहीं था, बल्कि कैथोलिक धर्म का कट्टर समर्थक था!
उसने अपनी सेना में वृद्धि की ताकि व जनता को आतंकित कर सके! इस की इस नीति का जनता द्वारा विरोध किया जाना स्वभाविक था!
(2) टेस्ट अधिनियम को रद्द करना –
जेम्स इंग्लैंड में कैथोलिक धर्म की प्रधानता स्थापित करना चाहता था परंतु टेस्ट एक्ट उसके रास्ते में काॅंटे की तरह खटक रहा था! टेस्ट एक्ट के रहते हुए वह कैथोलिकों को उच्च पदों पर नियुक्त नहीं कर सकता था!
जेम्स द्वितीय ने इस अधिनियम को स्थगित करने के लिए संसद को कहा, किंतु संसद ने ये प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया! तब उसने अपने पक्ष के न्यायाधीशों के माध्यम से टेस्ट अधिनियम को रद्द करवा दिया! इससे अनेक कैथोलिकों को मंत्री, न्यायाधीश, नगर निगम के सदस्य जातियों में उच्च पदों पर नियुक्त किया गया! अतः संसद इससे रुष्ट हो गया!
(3) मन्मथ का विद्रोह और खूनी अदालतें –
जेम्स द्वितीय के अवैध पुत्र मन्मथ ने सिहासन प्राप्ति के लिए जेम्स द्वितीय के विरुद्ध विद्रोह कर दिया जेम्स द्वितीय ने मन्मथ को पराजित कर बंदी बना लिया और उसे व उसके साथियों को न्यायालय द्वारा मृत्युदड दिया गया! इस न्यायालय को खूनी न्यायालय कहा गया!
स्कॉटलैंड में भी अर्ल ऑफ आर्जिल ने विद्रोह किया, इस विद्रोह का भी कठोरता से दमन किया गया! 300 व्यक्तियों को मृत्युदंड दिया गया और 800 व्यक्तियों को दास बनाकर वेस्टइंडीज द्वीपों में भेज कर भेज दिया गया! स्त्री और बच्चों को भी क्षमा नहीं किया गया! इस क्रूरता और निर्दयता के कारण जनता में असंतोष उत्पन्न हुआ
(4) संसद द्वारा अधिकारों के लिए संघर्ष –
संसद राजा के अधिकारों को सीमित एवं नियंत्रित करना चाहती थी, जबकि राजा संसद पर अपनी सर्वोच्चता स्थापित करना चाहता था! फलत: राजा और संसद के मध्य संघर्ष प्रारंभ हो गया! इस संघर्ष का अंत शानदार क्रांति के रूप में हुआ और अंत में संसद ने राजा पर विजय प्राप्त की!
(5) धार्मिक न्यायालय की स्थापना –
गैर कैथोलिक पर प्रहार करने के लिए जेम्स ने 1688 में विशेष धार्मिक न्यायालय की स्थापना की! इस न्यायालय की स्थापना का मुख्य उद्देश्य पादरियों से राजाओं के मनमाफिक काम करवाना तथा कैथोलिक विरोधियों को दंडित करना था! इस प्रकार विशेष न्यायालयों पर दीर्घ संसद द्वारा प्रतिबंध लगाया जा चुका था, लेकिन जेम्स ने इसकी परवाह नहीं की!
(6) विश्वविद्यालयों में हस्तक्षेप –
विश्वविद्यालयों में अनावश्यक हस्तक्षेप तथा कैथोलिकों की जबरन नियुक्तियों से जेम्स द्वितीय ने बुद्धिजीवी वर्ग की सहानुभूति भी खो दी! कैथोलिक मतावलंबी होने से जेम्स द्वितीय ने विश्वविद्यालय में भी ऊंचे पदों पर कैथोलिकों को नियुक्त किया! कैंब्रिज विश्वविद्यालय के कुलपति को इसलिए हटा दिया गया, क्योंकि उसने कैथोलिक पादरी को डिग्री देने से इनकार कर दिया था! इससे प्रोटेस्टेंट संप्रदाय के लोग जेम्स द्वितीय के विरोधी हो गए!
(7) धार्मिक अनूग्रह की घोषणा –
जेम्स द्वितीय ने इंग्लैंड को कैथोलिक देश बनाने के लिए 1687 और 1688 में दो बार धार्मिक अनुग्रह की घोषणा की!प्रथम घोषणा से कैथोलिकों पर लगे प्रतिबंधों एवं नियंत्रण को समाप्त करते हुए उन्हें धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान की गई! अब कैथोलिकों के लिए राजकीय पदों पर नियुक्ति का मार्ग प्रशस्त किया गया!
द्वितीय घोषणा में जेम्स द्वितीय ने धार्मिक अनुग्रह की घोषणा को लगातार दो इतवारों को गिरजाघर में पादरियों द्वारा पढ़े जाने का आदेश दिया! उसके इस निर्णय का पादरियों ने विरोध किया!
(8) सात पादरियों पर अभियोग –
जेम्स ने आदेश दिया था कि प्रत्येक रविवार को उसकी द्वितीय धार्मिक घोषणा पादरियों द्वारा चर्च में प्रार्थना के अवसर पर पढ़ी जाए! इसके विरोध में कैंटरबरी के आर्च बिशप सेनक्राफ्ट ने अपने छह साथियों सहित जेम्स को एक आवेदन पत्र प्रस्तुत किया, जिसमें जेम्स ने अपनी आज्ञा को निरस्त करने के लिए निवेदन किया गया!
परंतु जेम्स ने क्रोधित होकर इन पादरियों को बंदी बनाकर उन पर राजद्रोह का मामला चलाया! न्यायालय ने पादरियों को दोषमुक्त कर दिया! इससे जनता और सेना ने पादरियों की मुक्ति पर हर्ष जताया तथा जेम्स के विरुद्ध विद्रोह व्यक्त किया!
(9) सेना में कैथोलिकों की भर्ती –
विद्रोह को दबाने के बहाने जेम्स ने बड़ी संख्या में कैथोलिकों को सेना में भर्ती कर लिया! उधर उसी समय फ्रांस के लुई चौदहवे ने प्रोटेस्टेंट पर अत्याचार शुरू किया! इंग्लैंड में धारणा थी कि लुई चौदहवे को प्रोटेस्टेंटों विद्रोही कार्यवाहियों को जेम्स द्वितीय का गुप्त समर्थन प्राप्त है!
(10) जेम्स द्वितीय कि निष्फल विदेश नीति –
जेम्स द्वितीय कैथोलिक मत का अनुयाई था, जबकि इंग्लैंड के अधिकांश जनता प्रोटेस्टेंट मत की अनुयायी थी! जेम्स कैथोलिक को को अधिकाधिक सुविधा प्रदान करना चाहता था! जेम्स द्वितीय ने पोप को इंग्लैंड में आमंत्रित किया और उसका अत्याधिक सम्मान किया! उसने लंदन में कैथोलिक गिरजाघर भी स्थापित किया! इससे इंग्लैंड में प्रोटेस्टेंट मतों के अनुयाई उसके विरोधी हो गए
इंग्लैंड की क्रांति का महत्व और परिणाम (England ki kranti ka mahatv aur parinaam) –
इंग्लैंड की क्रांति का महत्व एवं परिणाम इस प्रकार है –
(1) संसद की सर्वोच्चता स्थापित –
इस क्रांति से स्टुअर्ट राजाओं और संसद के बीच दीर्घ काल काले से चले आ रहा संघर्ष समाप्त हो गया और क्रांति के दौरान संसद ने “बिल आफ राइट्स” पारित कर उस पर विलियम और मेरी की स्वीकृति हासिल कर ली! इससे संसद की राजा पर सर्वोच्च था स्थापित हो गई !
(2) राजा के विशेषाधिकार समाप्त-
इस कांति ने राजा के देवी अधिकारों को अमान्य कर दिया! संसद की स्वीकृति के बिना राजा द्वारा कोई कानून बनाने या किसी कानून को निरस्त करने, कोई कर लगाने या पुराना कर हटाने, नागरिक स्वतंत्रता प्रतिबंधित करने आदि के अधिकारों से राजा को वंचित कर दिया गया!
राजा संसद के अधिकारों में किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं कर सकता था! इस प्रकार संसद अपने कार्यों के लिए स्वतंत्र थी!
(3) यूरोपीय राजनीति पर प्रभाव –
इंग्लैंड की शानदार क्रांति का प्रभाव यूरोप के अन्य देशों पर भी पड़ा! अब तक यूरोप में निरंकुश स्वेच्छाचारी राजसत्ता ही आदर्श मानी जाती थी, किंतु इस क्रांति के पश्चात यूरोप के अन्य देशों में भी संवैधानिक राजतंत्र और लोकतंत्रात्मक शासन प्रणाली के लिए आंदोलन प्रारंभ हो गए!
(4) सेना पर संसद की सर्वोच्चता –
अब तक सेना और उसके अधिकार राजा के अधीन थे! परंतु अब संसद ने विद्रोह अधिनियम पारित कर सेना पर पूर्ण नियंत्रण स्थापित कर लिया! इससे राजा की सैन्य शक्ति समाप्त हो गई और सेना में व्याप्त व्यवस्था भी दूर हो गई!
इस प्रकार रक्तहीन परिवर्तन द्वारा निरंकुशवाद पर स्थायी अंकुश, संसद के सर्वोच्चता और भविष्य के लिए एक नई आशा के कारण ही आधुनिक पश्चिम के इतिहास में अंग्रेजी क्रांति को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है!
(5) गृह और विदेश नीति पर संसद की सर्वोच्चता –
अब तक राजा देश की ग्रह और विदेश नीतियों का संचालन करता था! वह अपने व्यक्तिगत स्वार्थों से प्रेरित रहता था! देश के हितों की उपेक्षा की जाती थी! इससे अनेक बार राजा द्वारा अपनाई गई विदेश नीति निष्फल हो रही थी!
किंतु क्रांति के बाद गृह और विदेश नीति का निर्धारण संसद के परामर्श और स्वीकृति से किया जाने लगा! जिससे इंग्लैंड की अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई और उसका औपनिवेशिक साम्राज्य का विस्तार हुआ!
प्रश्न :- इंग्लैंड के इतिहास में खूनी मेरी किसे कहा जाता है
उत्तर :- मैरी प्रथम ने अपने शासनकाल में प्रोटेस्टैंटों को दी गई मौत की जघन्य सजाओं के कारण उन्हें खूनी मैरी यानि “Bloody Mary” के नाम से भी बदनाम कर दिया।
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