धन निष्कासन का सिद्धांत क्या हैं (drain of wealth theory in hindi) –
धन निष्कासन से तात्पर्य भारतीय धन-संपदा का विदेशों में गमन और उसके बदले भारत को कुछ भी प्राप्त न होने से है! सर्वप्रथम दादा भाई नौरोजी ने 1867 ई. में “इंग्लैंड डेप्ट टू इंडिया” नामक लेख में धन निष्कासन का सिद्धांत प्रतिपादित किया था! आगे आर.सी.दत्त, सुरेंद्रनाथ बनर्जी, जी. वी. जोशी, एम.जी. रानाडे, आदि विद्वानों ने भी धन के निष्कासन के संदर्भ में ब्रिटिश सरकार की आलोचना की!
धन निष्कासन के स्त्रोंत (dhan nishkasan ke strot) –
धन निष्कासन की समस्या प्लासी के युद्ध के पश्चात प्रारंभ हुई! प्लासी के युद्ध के पूर्व यूरोप के व्यापारी बाहर से धन लाकर भारत में वस्तुओं को खरीदकर इन वस्तुओं को विदेशी बाजारों में अधिक कीमत पर बेचते थे, किंतु प्लासी और बक्सर के युद्ध के पश्चात बंगाल में कंपनी की सत्ता स्थापित हो गई!
अब भारत से वाणिज्यिक वस्तुओं की खरीदी के लिए बंगाल से प्राप्त लूट का धन, व्यापार से प्राप्त लाभांश एवं बंगाल से प्राप्त दीवानी का उपयोग किया जाने लगा! इस प्रकार धन की निकासी की प्रक्रिया प्रारंभ हो गई! आगे धन की निकासी के रूप में अनेक मदें शामिल होती गई, जैसे –
(1) भारत में साम्राज्य विस्तार और विद्रोह को दबाने के लिए अंग्रेजी सरकार द्वारा लिए गए ऋण पर ब्याज!
(2) अंग्रेजी अधिकारियों के वेतन, भत्ते और पेंशन आदि!
(3) कंपनी के शेयरधारकों को दिया जाने वाला लाभांश!
(4) व्यापार, उद्योग, बागान में निवेश की गई निजी पूंजी की आय!
(5) गृह व्यय के अंतर्गत रेलवे पर प्रत्याभूत ब्याज, भारत सचिव के ऑफिस का खर्च आदि हो रखा गया!
धन निष्कासन की मात्रा (dhan nishkasan ki matra) –
दादाभाई नौरोजी के अनुसार 1757 ई. से 1865 ई. के बीच भारत भारत से 150 करोड़ पौंड का निष्कासन हुआ! उसी प्रकार दिनशा वाचा के अनुसार 1860 ई. से 1920 ई. के बीच भारत से 30-40 करोड़ रूपया प्रतिवर्ष का निष्कासन हुआ! कुल मिलाकर भारत से कितना धन इंग्लैंड जाता था इसका आकलन करना कठिन है! किंतु यह निश्चित है कि भारत से इंग्लैंड एक बहुत बड़ी राशि की निकासी हुई, जो सरकारी आंकड़ों से कहीं अधिक थी!
धन निष्कासन का प्रभाव या परिणाम (dhan nishkasan ka prabhav) –
सकारात्मक प्रभाव –
(1) धन निष्कासन के विरोध में विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार हेतु कई आंदोलन हुए, जिससे स्वदेशी वस्तुओं को प्रोत्साहन मिला!
(2) स्वतंत्रता संग्राम के दौरान धन निष्कासन का मुद्दा सदैव अंग्रेजों के विरुद्ध एक हथियार के रूप में प्रयोग किया गया!
(3) धन की निकासी ने भारत में राष्ट्रीयता के विकास में भी अपना योगदान दिया! कुछ भारतीय अर्थशास्त्री होने धन की निकासी का सिद्धांत प्रतिपादित कर अंग्रेजों के शोषणमूलक चरित्र को उजागर किया तथा ब्रिटिश औपनिवेशिक हितों के खिलाफ आवाज उठाई! इससे भारत में राष्ट्रीयता की भावना का विकास हुआ!
नकारात्मक प्रभाव –
(1) धन निकासी ससे कृषि उत्पादन में गिरावट आई, हस्तशिल्प उद्योग का पतन हुआ एवं आधुनिक उद्योगों का विकास अवरुद्ध हो गया!
(2) धन निकासी से इंग्लैंड में औद्योगिक विकास हुआ, जिससे ब्रिटिश साम्राज्यवाद का कार्य और आसान हो गया!
(3) लगातार धन निष्कासन होने से अधिशेष पूंजी का निर्माण नहीं हो सका! जिससे भारत में निवेश की संभावना समाप्त हो गई तथा रोजगार एवं प्रतिव्यक्ति आय में कमी आई! कुल मिलाकर भारत में विकास के विकास का सबसे बड़ा कारण धन की निकासी ही था!
निष्कर्ष –
निष्कर्षत: यह कहा जा सकता है कि भारतीय विद्वानों ने धन निकासी का सिद्धांत के आलोचकों को एक-एक तर्क का जवाब देते हुए यह सिद्ध किया कि ब्रिटिश शासन के दौरान धन की निकासी हुई! यद्यापि धन की निकासी कितनी हुई और उसमें किन-किन मदों को शामिल किया जाना चाहिए, इस बात को लेकर मतभेद हो सकता है!
किंतु इसमें कोई शक नहीं है कि अंग्रेज भारत की संपत्ति को लूटते रहे तथा भारत को दरिद्र बनाते रहे! मोहम्मद गजनवी द्वारा भारत में 17 बार भारत का धन लूटा गया, जो ब्रिटिश शासन के लगभग 100 वर्षों की निरंतर निकासी की तुलना में मात्रा एवं प्रभाव की दृष्टि से नगण्य दिखता है!
प्रश्न :- धन निष्कासन का सिद्धांत किसने प्रतिपादित किया?
उत्तर :- सर्वप्रथम दादा भाई नौरोजी ने 1867 ई. में “इंग्लैंड डेप्ट टू इंडिया” नामक लेख में धन निष्कासन का सिद्धांत प्रतिपादित किया था! आगे आर.सी.दत्त, सुरेंद्रनाथ बनर्जी, जी. वी. जोशी, एम.जी. रानाडे, आदि विद्वानों ने भी धन के निष्कासन के संदर्भ में ब्रिटिश सरकार की आलोचना की!
प्रश्न :- धन निष्कासन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर :- धन निष्कासन से तात्पर्य भारतीय धन-संपदा का विदेशों में गमन और उसके बदले भारत को कुछ भी प्राप्त न होने से है! सर्वप्रथम दादा भाई नौरोजी ने 1867 ई. में “इंग्लैंड डेप्ट टू इंडिया” नामक लेख में धन निष्कासन का सिद्धांत प्रतिपादित किया
प्रश्न :- धन-निष्कासन का सिद्धांत कब दिया
उत्तर :- धन के निष्कासन का सिद्धांत सर्वप्रथम दादाभाई नौरोजी ने 2 मई 1867 को लंदन में ईस्ट इण्डिया एसोसियेशन की बैठक में प्रस्तुत किया। उन्होंने “इंग्लैंड डेप्ट टू इंडिया” नामक लेख में धन निष्कासन का सिद्धांत प्रतिपादित किया था