दिल्ली सल्तनत के पतन के कारण बताइए (delhi sultanate ke patan ke karan)

दिल्ली सल्तनत के पतन के कारण (delhi sultanate ke patan ke karan) –

दिल्ली सल्तनत की स्थापना 1206 ई. में कुतुबुद्दीन ऐबक के राज्याभिषेक से हुई थी तथा उसका पतन पानीपत युद्ध में बाबर के द्वारा इब्राहिम को परास्त किए जाने से 1526 में हुआ। उत्थान और पतन प्रकृति का नियम है। अनेक शक्तिशाली राज्यों का उत्थान एवं पतन प्रकृति के इस नियम की पुष्टि करता है।

दिल्ली सल्तनत भी इसका अपवाद नहीं थी। दिल्ली सल्तनत के पतन के लिए कोई एक विशिष्ट कारण नहीं था, वरना ने कारण संयुक्त रूप से इसके लिए उत्तरदायी थे। दिल्ली सल्तनत के पतन के लिए उत्तरदाई मुख्य कारण निम्नलिखित है-

(1) निरंकुश शासक –

दिल्ली सल्तनत के अधिकांश शासक अत्यंत निरंकुश एवं प्रतिक्रियावादी थे। राज्य की संपूर्ण शक्ति को अपने हाथों में केंद्रित करके वे निरंकुशतापूर्वक शासन करते थे। अपनी शक्ति में वृद्धि करने के लिए सुल्तानों ने उलेमा अथवा धर्मधिकारियों की भी परवाह न की।

अपने विरुद्ध सिर उठाने वालों के प्रति सुल्तान अत्यंत कठोर एवं बर्बर नीति का पालन करते थे। अलाउद्दीन खिलजी के शासन काल में नवीन मुसलमानों को जिस प्रकार से दंडित किया गया था, वह सल्तनतकालीन निरंकुशता का ज्वलंत उदाहरण है।

(2) उत्तराधिकार के नियम का अभाव –

उत्तराधिकार नियम का नियम ना होना भी सल्तनत के पतन का एक कारण बना। किसी भी सुल्तान की मृत्यु के उपरांत राजगद्दी पर उसका बड़ा पुत्र ही बैठे या आवश्यक नहीं था। अतः राजगद्दी पर अधिकार करने के लिए उसके पुत्रों को सरदारों में होड़ लग जाती थी। इल्तुतमिश जलालुद्दीन के अभाव से लाभ उठाकर शासक बन गए थे। उत्तराधिकार ना होने के कारण अनेक विद्रोह भी हुए।

(3) दास प्रथा –

सल्तनत काल की एक प्रमुख विशेषता दासों के द्वारा राजनीति में महत्वपूर्ण भाग लिया जाना था। गुलाम वंश के पतन के पश्चात भी गुलामों ने प्रशासन में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। उदाहरण के लिए मलिक काफूर एवं खुसरो के नाम लिए जा सकते हैं। यह गुलाम यद्यपि अत्यंत योग्य थे,

किंतु इनमें स्वामीभक्ति की भावना ना थी, जिसका दुष्परिणाम इनके सुल्तानों को सहना पड़ा। मलिक काफूर व खुसरो ने भी अपने अपने अधिकार करने का प्रयास किया। सल्तनत काल में गुलामों की शक्ति बहुत बढ़ गई थी जिससे समय-समय पर षड्यंत्र करके सल्तनत को दुर्बल को बनाते रहते थे।

(4) विशाल साम्राज्य –

सल्तनतकाल में दिल्ली सल्तनत का अत्यंत विशाल होना भी उसके पतन का कारण बना। अलाउद्दीन ने विजयो द्वारा लगभग संपूर्ण भारत पर अधिकार कर लिया था किंतु उसने दूरदर्शिता प्रदर्शित करते हुए दक्षिण भारत पर अपना अप्रत्यक्ष शासन स्थापित नहीं किया। इसके विपरीत तुगलक वंश के शासको ने दक्षिण भारत पर अपना सीधा शासन स्थापित करने का प्रयास किया

(5) दुर्बल सैन्य व्यवस्था –

सल्तनत कालीन सैन्य व्यवस्था में अनेक दुर्बलताएं थी। सैनिक व्यवस्था का सबसे प्रमुख दोष स्थाई सेना का अभाव था। सल्तनत काल में अधिकांश शासकों के पास स्थाई सेना नहीं थी। अलाउद्दीन खिलजी ने इसके महत्व को समझा था तथा स्थायी सेना तैयार की थी। इसी कारण उसे अत्यधिक सफलता भी मिली, किंतु उसके उतरा अधिकारियों ने पुनः स्थाई सेना को छिन्न-भिन्न कर दिया।

स्थायी सेना के अभाव में सुल्तानों को अमीरों व प्रांतीय सूबेदारो की सेना पर निर्भर रहना पड़ता था, जिससे अमीरों के प्रभाव में वृद्धि होती थी व सुल्तानों की  प्रशासन पर पकड़ ढीली हो जाती थी। इसके अतिरिक्त सल्तनतकालीन सुल्तानों की सेना में अनेक जातियों (ईरानी, तुर्की, अफगान) के सैनिक थे, जिनका परस्पर सहयोग ना था। सुल्तान के सीधे नियंत्रण में न रहने के कारण उनमें स्वामीभक्ति का भी अभाव रहता था, अतः सुल्तान की सैनिक स्थिति श्रद्धा नहीं हो पाती थी।

(6) अमीरों की महत्वाकांक्षाऍ –

दिल्ली सल्तनत के पतन का एक प्रमुख कारण अमीरों की बढ़ती हुई महत्वकांक्षाऍ थी। सल्तनत काल में अमीर अत्यंत शक्तिशाली थे। अपार धन-संपत्ति विशाल सेना के स्वामी होने के कारण वे स्वयं सुल्तान बनने का स्वप्न देखने लगे थे। यही कारण था कि कुतुबुद्दीन ऐबक से लेकर अंतिम सुल्तान इब्राहिम लोदी तक को अमीरों का सामना करना पड़ा। अमीरों की बढ़ती हुई शक्ति से सुल्तान के पद की प्रतिष्ठा का हृास हुआ।

(7) तुगलक वंश के शासकों की नीतियां –

तुगलक वंश के शासकों ने नीति निर्धारित करने एवं इनका पालन करने में अपनी विवेकनता का परिचय दिया, जिसने दिल्ली सल्तनत के पतन की गति को शुरू कर दिया। मोहम्मद तुगलक ने अपनी योजनाओं से दिल्ली सल्तनत को आर्थिक एवं सैनिक दृष्टिकोण से जर्जर कर दिया। 

उसकी नीतियों से जनसाधारण में आक्रोश उत्पन्न हुआ। उसक विफलताओं के कारण ही उसे इस्लामी जगत का सबसे अधिक विद्वान मूर्ख कहा गया। मोहम्मद तुगलक ने राजधानी परिवर्तन को जिस प्रकार से कार्यान्वित किया,वह उसकी अदूरदर्शिता का प्रमाण है। इसी कारण “लेन पुल” ने लिखा है कि दौलताबाद मोहम्मद तुगलक की शक्ति के दुरुपयोग का स्मारक था। 

मोहम्मद तुगलक का मुद्रा परिवर्तन का प्रयोग भी असफल रहा, जिसके गंभीर परिणाम हुए। मोहम्मद तुगलक की दक्षिण नीति भी असफल रही। फिरोज तुगलक भी दिल्ली सल्तनत की स्थिति को सुदृढ़ न कर सका। यद्यपि उसने कुशल प्रशासनिक व्यवस्था स्थापित की, किंतु जागीर प्रथा को पुनःप्रारंभ करने की धार्मिक नीति ने सल्तनत को कमजोर बनाया। फिर तुगलक के अधिकारियों और भी अयोग्य निकले व सल्तनत का तीव्र गति से पतन होने लगा।

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