अंतःकरण या अंतरात्मा की आवाज (antaratma ki awaz) –
अंत:करण (Conscience) की आवाज मानवीय अस्तित्व से जुड़ा एक ऐसा दार्शनिक विषय है, जिस पर समय-समय पर दार्शनिकों ने अपने विचार व्यक्त किए हैं! इन दार्शनिक वाद-विवादों के अनेक आयाम हैं, किंतु इस बात पर मतैक्य हैं कि मानवीय चेतना का एक ऐसा पहलू अवश्य है, जहां कोई अज्ञात सत्ता व्यक्ति को निरंतर उच्च सिद्धांतों के अनुगमन की ओर प्रेरित करती है! इसी अज्ञात सत्ता के मूक एवं आत्मनिष्ठ मार्गदर्शन को अंत;करण की आवाज या अंतरात्मा की आवाज कहते हैं!
यह व्यक्ति के समस्त नैतिक निर्णयों का स्त्रोत है! अंतःकरण की आवाज से हम उचित व अनुचित का अंतर करते हुए सही निर्णय कर पाते हैं! अंतर;करण की आवाज व्यक्ति के सामाजिक, सांस्कृतिक व पारिवारिक संस्कारों से निर्धारित होती है, जब भी कोई कठिन परिस्थिति होती है या व्यक्ति उचित-अनुचित के बीच किकर्तव्यविमुढ हो जाता है, तब अंत: करण की आवाज अथवा चेतना ही उसे सही राह दिखा कर उचित निर्णय की ओर ले जाती है!
डियोंटोलॉजिकल दृष्टिकोण से अंतरात्मा (Conscience) एक निर्णय है-एक बौद्धिक कार्य है! यह महसूस या भावना नहीं है, बल्कि एक बौद्धिक निर्णय हैं! अक्सर हम लोगों को यह कहते हुए सुनते हैं कि ‘यदि तुम्हें अच्छा लगे तो उससे करो’ पर क्या वास्तव में जो भी अच्छा लगे, उसे करना नैतिक रूप से उचित है?
उदाहरण के द्वारा इसे देखा जा सकता है! कुछ लोग स्वभाव व व्यवहार में काफी नस्लवादी होते हैं और उसके बारे में बुरा नहीं सोचते! तो क्या उनकी नक्सलवादी सोच एवं व्यवहार को नैतिक कहा जा सकता है? निश्चित रूप से नहीं! इस प्रकार सही अंतरात्मा की किसी भावना विशेष से तुलना करना गलत होगा!
नैतिक मार्गदर्शन के रूप में अंतरात्मा Ethics (Conscience as moral guidance in hindi) –
अंतरात्मा व्यक्ति को नैतिक मार्गदर्शन देती है जिसे निम्न बिंदुओं के माध्यम से स्पष्ट किया जा सकता है –
(1) अंतरात्मा व्यक्ति को सही-गलत का एहसास कराकर उसे सही कार्य की ओर प्रेरित करती है!
(2) यह भीतर से निर्देशित करती है कि आपको क्या करना है?
(3) यह मन और मस्तिष्क को सही या उचित निर्णय के लिए प्रेरित करती है!
(4) यह व्यक्ति को एक आदर्श शिक्षक की भॉंति निर्देशित करती है!
(5) यह सदाचारों की गहराइयों में डुबकियांया मारने का तानाशाही आदेश है!
अंतरात्मा के प्रयोग हेतु सावधानियां (antaratma ke prayog hetu savdhaniya) –
(1) अपनी अंतरात्मा से निर्णय लेने से पूर्व उसे और स्पष्ट जानकारी जुटाने की कोशिश करनी चाहिए!
(2) अगर व्यक्ति को उचित सलाह मिलती है, तो उस पर ध्यान देना चाहिए!
(3) व्यक्ति को कोशिश करनी चाहिए कि ऐसे विवेक क्षमता विकसित करें कि उसकी अंतरात्मा समुचित निर्णयों पर ही पहुंचे!
(4) अंतरात्मा से निर्णय लेते समय अति आत्मविश्वास की अवस्था से बचना चाहिए!
इन्हें भी पढ़ें –
सत्यनिष्ठा किसे कहते हैं उसका महत्व एवं प्रकार
अभिवृत्ति किसे कहते हैं प्रकार एवं महत्व
I greatly enjoyed the guidance and pleased the depth of the words.
Thank you so much,