1857 का विद्रोह (1857 ki kranti in hindi) –
1857 की क्रांति भारतीय इतिहास की एक युगांतकारी घटना है! 1857 में उत्तरी और मध्य भारत में एक शक्तिशाली जन विद्रोह उठ खड़ा हुआ और उसने ब्रिटिश शासन की जड़ों तक को हिला कर रख दी! इसका प्रारंभ तो कंपनी की सेना के भारतीय सिपाहियों से हुआ, लेकिन जल्द ही इसने व्यापक रूप धारण कर लिया! लाखों लाख किसान, दस्तकार तथा सिपाही एक साल से अधिक समय तक बहादुरी से लड़ते रहे और अपने उल्लेखनीय वीरता और बलिदान से उन्होंने भारतीय इतिहास में एक नया शानदार अध्याय जोड़ा!
1856 में अंग्रेजों ने पुरानी बंदूक ब्राउन बैस के स्थान पर नई एनफील्ड राइफल को प्रयोग करने का निर्णय किया! इसके लिए जो कारतूस बनाए गए उन्हें राइफल में भरने से पहले मुंह से खोलना पड़ता था! इन कारतूसों में गाय और सुअर की चर्बी का प्रयोग किया गया था! यह चर्बी वाला कारतूस ही 1857 की क्रांति का प्रमुख कारण बना!
29 मार्च 1857 ई. को मंगल पांडे नामक एक सैनिक ने बैरकपुर में गाय की चर्बी वाले कारतूसों को मुंह से काटने से स्पष्ट मना कर दिया था, फलस्वरूप उसे गिरफ्तार कर 8 अप्रैल 1857 को फांसी दे दी गई! मंगल पांडे का संबंध 34 वा बंगाल नेटिव इन्फेंट्री से था! 10 मई 1857 दिन मेरठ की पैदल टुकड़ी 20 N.I. से 1857 की क्रांति की शुरुआत हुई! 1857 की क्रांति के समय भारत का गवर्नर जनरल लॉर्ड कैनिंग और इंग्लैंड के प्रधानमंत्री पार्म स्टेन थे!

1857 की क्रांति के कारण (1857 ki kranti ke karan) –
(1) लार्ड डलहौजी की हड़प नीति –
लॉर्ड डलहौजी द्वारा लागू इस सिद्धांत के द्वारा देशी राजाओं को अपने अधिकार के रूप में गोद लेने का अधिकार समाप्त कर दिया गया तथा सातरा, संबलपुर, जयपुर, उदयपुर, झांसी, नागपुर आदि राज्यों को ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया गया था अतः देशी राजाओं में अंग्रेजों के प्रति आक्रोश था!
(2) पेंशन एवं उपाधियों का अंत –
लॉर्ड डलहौजी द्वारा पेशवा बाजीराव द्वितीय के दत्तक पुत्र नाना साहेब की पेंशन बंद कर दी गई तथा कर्नाटक सूरत एवं तंजौर के राजाओं की उपाधियों का अंत कर दिया गया! उसी प्रकार डलहौजी मुगल शासकों को भी लाल किले से हटाने, बादशाह की उपाधि छोड़ने तथा अपना उत्तराधिकारी नामजद करने का अधिकार छोड़ने को कहा, परंतु डलहौजी की उपयुक्त नीतियों के विरुद्ध शासकों के साथ-साथ जनता में भी आक्रोश था!
(3) अवध का विलय –
अवध के अंतिम नवाब वाजिद अलीशाह का वैध उत्तराधिकारी था! व्यापगत सिद्धांत के अनुसार अवध का विलय नहीं किया जा सकता था! अत: डलहौजी ने कुशासन के आधार पर राशि में अवध को ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया! जिससे आक्रोशित होकर अवध के तालुकदार विद्रोह हेतु अवसर की तलाश में रहते थे!
(3) ब्रिटिश भू-राजस्व नीति –
ब्रिटिश भू-राजस्व नीति के अंतर्गत कृषको के शोषण को प्रोत्साहन दिया गया! कृषक ऋणग्रस्तता, भुखमरी, गरीबी एवं दासता के शिकार हुए! साथ ही साथ भू राजस्व नीति का लाभ परंपरागत जमीदारों को भी प्राप्त नहीं हुआ था! अत: कृषि से जुड़े विभिन्न वर्गों में अंग्रेजो के खिलाफ असंतोष व्याप्त हो गया!
(4) ब्रिटिश औद्योगिक नीति –
ब्रिटिश औद्योगिक नीति के कारण भारत में हस्तशिल्प उद्योग पतन हो गया! अतः इन उद्योगों से जुड़े दस्तकारों, बुनकरो, शिल्पियों आदि वर्गों में भी असंतोष था! उसी प्रकार भेदमूलक आयात एवं निर्यात नीति के कारण भारतीय व्यापारियों की अंग्रेजी शासन के विरुद्ध आक्रोश था!
(5) सैनिकों से भेदभावपूर्ण व्यवहार –
भारतीय सिपाहियों के साथ वेतन तथा पदोन्नति में भेदभाव किया जाता था! सेना में सूबेदार से ऊपर के पदों में भारतीयों को नियुक्त नहीं किया जाता था! सेना में भारतीय सैनिकों एवं यूरोपीय सैनिकों का अनुपात 6:1 था जबकि सेना के कुल खर्च का आधे से अधिक भाग यूरोपीय सैनिकों पर खर्च किया जाता था! इसी प्रकार वेतन वृद्धि एवं पदोन्नति पर यूरोपियों का एकाधिकार था!
(6) प्रशासनिक विभेद (prashasnik vibhed)-
ब्रिटिश शासन के अंतर्गत नए फौजदारी एवं दीवानी कानून लागू किए गए, न्यायालयों में फारसी के बदले अंग्रेजी को अपनाया गया तथा भारतीय प्रशासन के अधिकारियों के साथ भेदभाव किया गया, परिणामस्वरुप जनता एवं ब्रिटिश सेवाओं में नियुक्त भारतीयों में असंतोष पैदा हो गया!
(7) इनाम कमीशन –
1857 ई. में डलहौजी ने जमीदारों एवं जागीरदारों की जांच के लिए इनाम कमीशन बैठाया तथा जांच के बाद 20,000 जागीरें जप्त कर ली गई! डलहौजी के इस कार्य के विरुद्ध भी जमीदारों में संतोष था
(8) सैनिकों के साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार –
भारतीय सिपाहियों के साथ वेतन और पदोन्नति में भेदभाव किया जाता था! सेना में सूबेदार के ऊपर के पदों में भारतीयों की नियुक्त नहीं किया जाता था! सेना में भारतीय सैनिकों एवं यूरोप के सैनिकों का अनुपात 6:1 था जबकि सेना के कुल खर्च का आधे से अधिक भाग यूरोपीय सैनिकों पर खर्च किया जाता था! उसी प्रकार वेतन वृद्धि एवं पदोन्नति पर यूरोपीय का एकाधिकार था!
1857 की क्रांति के असफलता के कारण (1857 ki kranti ke asafalta ke karan) –
(1) निश्चित उद्देश्य का अभाव!
(2) योग्य नेतृत्व का अभाव!
(3) संगठन का अभाव
(4) अंग्रेजों के अनुकूल परिस्थितियां एवं कुशल नेतृत्व
(5) सैन्य दृष्टिकोण
(6) विद्रोह का सीमित स्वरूप!
(1) निश्चित उद्देश्य का अभाव –
1857 के विद्रोह में यह कहनाकठिन है कि सभी विद्रोही राष्ट्रीयता की भावना से प्रेरित होकर लड रहे थे! भारतीय सैनिकों ने चर्बी वाले कारतूस को कारण विद्रोह किया था, जिन्हें अपने लक्ष्य का पता नहीं था! उसी प्रकार नाना साहब पेंशन एवं बेगम हजरत महल व झांसी की रानी अपने द्वारा नियुक्त उत्तराधिकारी के पक्ष में लड़ रहे थे!
(2) योग्य नेतृत्व का अभाव –
विद्रोहियों में वीरता एवं बहादुर की भावना थी किंतु उनके पास योग्य नेतृत्व का अभाव था! बहादुर शाह जफर ने नेतृत्व संभाल कर साहस प्रदर्शित किया, किंतु योग्यता नहीं!
(3) सैन्य दृष्टिकोण –
अंग्रेजों की तुलना में विद्रोहियों के साधन सीमित थे! भारतीय सैनिकों के पास जहां काफी कम बंदूकें थी और वे प्रायः तलवारों एवं भालों से लड़े, वही अंग्रेजी सेना आधुनिक हत्यारों जैसे – एनफील्ड राइफल इत्यादि से लैस थी! इसी प्रकार रेलवे, विद्युत तार व्यवस्था के माध्यम से ब्रिटिश सेनापति न केवल विद्रोहियों की गतिविधियों से अवगत रहे, बल्कि त्वरित गति से विद्रोह को कुचलने में भी सफल रहे!
(4) संगठन का अभाव –
इस विद्रोह में शामिल सैनिकों के पास मजबूत केंद्रीय संगठन का भी अभाव था! विद्रोह बिना किसी पूर्व निश्चित योजना के ही प्रारंभ हो गया था! पहले विद्रोह की तिथि 31 मई 1857 ई. निश्चित की गई थी, किंतु विद्रोह 10 मई को ही प्रारंभ हो गया!
1857 की क्रांति का महत्व (1857 ki kranti ka mahatva in hindi ) –
1857 ई. के विद्रोह ने भारतीयों को यह दिखा दिया कि सिर्फ सेना और शक्ति के बल पर ही अंग्रेजों से मुक्ति नहीं मिल सकती, बल्कि सभी वर्गों का सहयोग, समर्थन और राष्ट्रीय भावना आवश्यक है!1857 के विद्रोह से भारतीयों में राष्ट्रीयता का बीजारोपण हुआ! इस विद्रोह ने उन्हें एकता तथा संगठन का पाठ पढ़ाया और राष्ट्रीय जीवन में यह उनकी प्रेरणा का स्त्रोत बना!
विद्रोह के पश्चात ब्रिटिश सरकार का ध्यान देश की आर्थिक दशा को सुधारने की ओर उन्मुख हुआ! भारतीय इतिहास में यहीं से संवैधानिक विकास का सूत्रपात हुआ और धीरे-धीरे भारतीयों को अपने देश के शासन में भाग लेने का अवसर दिया जाने लगा! इस तरह भारत में प्रजातांत्रिक शासन का बीजारोपण हुआ!
1857 की क्रांति का परिणाम (1857 ki kranti ka parinaam) –
(1) भारतीय शासन की बागडोर कंपनी के हाथों से निकलकर का उनके हाथों में चली गई! गवर्नर जनरल को अब वायसराय कहां जाने लगा!
(2) इस घोषणा के द्वारा अब सरकार भारतीय मामलों के लिए सीधे उत्तरदाई हो गई!
(3) सरकार ने डलहौजी की हड़प नीति त्याग दी गई और भारतीय राजाओं को गोद लेने का अधिकार दे दिया गया! साथ ही यह भी स्पष्ट कर दिया गया कि अब भविष्य में कोई भी राज्य अंग्रेजी राज्य में नहीं मिलाया जाएगा!
(4) बंगाल प्रेसिडेंसी में यूरोपीय और भारतीय सैनिकों का अनुपात 1:2, तथा मद्रास व मुंबई प्रेसिडेंसी में 2:5 निश्चित कर दिया गया!
(5) सेना और तोपखाने के ऊंचे पदों पर केवल यूरोपियों के लिए ही आरक्षित कर दिया गए! विद्रोह के पहले सेना में बंगाल एवं अवध के सैनिक सर्वाधिक होते थे परंतु विद्रोह के पश्चात उनकी संख्या घटा दी गई और उनकी जगह पंजाब और गोरखों सैनिकों की संख्या में बढ़ोतरी की गई!
(6) भारतीय रजवाड़ों के साथ यथास्थिति बनाए रखने की बात कही गई!
(7) भारत का प्रशासन चलाने हेतु लंदन में भारत सचिव के पद का सृजन किया गया तथा उसकी सहायता के लिए 15 सदस्यों की एक परिषद बनाई गई, जिसमें आर्ट नियुक्ति सरकार द्वारा एवं साथ की कोर्ट ऑफ डायरेक्टर द्वारा होनी थी!
(8) विद्रोह के पहले सेना में बंगाल एवं अवध के सैनिक सर्वाधिक होते थे, परंतु विद्रोह के पश्चात उनकी संख्या घटा दी गई और उनकी जगह पंजाब एवं गोरखा सैनिकों की संख्या में वृद्धि की गई!
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